Monday, October 22, 2012

ओबामा जीते या रामनी जीते, हमें क्या

ओबामा जीते या रामनी जीते, हमें क्या
ये मुल्क नहीं मिल्कियत हमारी
हम इन्हें समझे हम इन्हें जाने
ये नहीं अहमियत हमारी

तलाश-ए-दौलत आए थे हम
आजमाने किस्मत आए थे हम
आते हैं खयाल हर एक दिन
जाएंगे अपने घर एक दिन
ओबामा जीते या रामनी जीते, हमें क्या
बदलेगी नहीं नीयत हमारी
हम इन्हें समझे ...

ना तो है हम डेमोक्रेट
और नहीं है हम रिपब्लिकन
बन भी गये अगर सिटीज़न
बन न पाएंगे अमेरिकन
ओबामा जीते या रामनी जीते, हमें क्या
छुपेगी नहीं असलियत हमारी
हम इन्हें समझे ...

न डेमोक्रेट्स का प्लान
न रिपब्लिकन्स का वाँर
कर सकता है
हमारा उद्धार
ओबामा जीते या रामनी जीते, हमें क्या
पूछेगा नहीं कोई खैरियत हमारी
हम इन्हें समझे ...
हम जो भी हैं
अपने श्रम से हैं
हम जहाँ भी हैं
अपने दम से हैं
ओबामा जीते या रामनी जीते, हमें क्या
काम आयेगी बस काबिलियत हमारी     
हम इन्हें समझे ...

फूल तो है पर वो खुशबू नहीं
फल तो है पर वो स्वाद नहीं
हर तरह की आज़ादी है
फिर भी हम आबाद नहीं
ओबामा जीते या रामनी जीते, हमें क्या
यहाँ लगेगी नहीं तबियत हमारी
हम इन्हें समझे ...

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2 comments:

Anonymous said...

"हम जो भी हैं, अपने श्रम से हैं, हम जहाँ भी हैं, अपने दम से हैं" - ऐसी ही line आपकी "मुक़द्दर" कविता की भी मुझे बहुत inspiring लगती है: "मेरे हाथों की लकीरों में अगर मुक़द्दर होता, मैं अपने ही हाथों के हुनर से बेख़बर होता"

Madan Mohan Saxena said...

बेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.