Friday, July 31, 2020

जो ऊपर छाया है

जो ऊपर छाया है

वो छाया नहीं 

और जो नीचे है

वह परछाई है

पर छाई नहीं 


ऐसी कई बातें हैं

जो मुझे 

कभी समझ आईं नहीं 


जिसका सब अंदर है 

वह समंदर क्यूँ है?

जो मन से दूर नहीं 

वह मन्दिर में क्यूँ है?


क्या 

पश्चाताप के

पश्चात आप

पश्चाताप 

नहीं कर सकते?


जब किसी नर्तकी से कहूँ

नाच ना 

और नाच-ना-जाने-आँगन-टेढ़ा से कहूँ

नाच ना

तो एक ही वाक्य के 

भिन्न मतलब क्यों निकलते हैं?


जब कान खड़े हो सकते हैं

तो ये बैठते-सोते कब हैं?


दिल कहीं

और दिल की गति

नापी कहीं जाती है

इस दीवाने को

यह दीवानगी 

समझ नहीं आती है


मेरा जन्मदिन 

हर सातवें दिन आता है

तो फिर साल में एक दिन ही

क्यों मनाया जाता है?


जो पहले आती है

वो छोटी कैसे?

और बाद वाली

बड़ी क्यों?

मातृभाषा का मात्रा के साथ

यह खिलवाड़ समझ नहीं आता है


आज़ादी के सब आज आदी नहीं

सम्बन्धों में सम नहीं 

सब क्यों बन्ध जाते हैं?


राहुल उपाध्याय । 31 जुलाई 2020 । सिएटल


Thursday, July 30, 2020

मुमकिन तो नहीं है

सुनने के लिए यहाँ क्लिक करें:

https://Tinyurl.com/RahulPoemsV


उसे यूँ भूल जाऊँ , मुमकिन तो नहीं है

उसे मैं याद आऊँ,  मुमकिन तो नहीं है


सुनूँगा मैं तराने, महफ़िल में लाखों लेकिन

उसे दिल सुन सकेगा, मुमकिन तो नहीं है


न जाम है, न साक़ी, न सुराही कहीं है

होश में मैं आ सकूँ, मुमकिन तो नहीं है


राहुल उपाध्याय । 30 जुलाई 2020 । सिएटल


मेरे घर पर ताला नहीं

मेरे घर पर 

ताला नहीं है 

फिर भी कोई 

आता नहीं है


चोर आए

चोरी करे

नक़ाबपोश भी

मुँह दिखाता नहीं है


संग्राम भी है

संग राम भी है

चारागर मगर

मिल पाता नहीं है


सब हैं

अपनी-अपनी ही धुन में

अब कोई किसी को

कुछ समझाता नहीं है


हर घड़ी अलार्म

बज रहा है 'राहुल'

फिर भी कोई

जग पाता नहीं है


राहुल उपाध्याय । 30 जुलाई 2020 । सिएटल


Wednesday, July 29, 2020

डार्क रूम


मेरे

अंतस्थल में 

कविता

नेगेटिव थी

गहरी 

काली थी


पाठकों के

अंतस्थल में 

घुसी

घुली

और रंगीन फ़ोटो बन गई


राहुल उपाध्याय । 29 जुलाई 2020 । सिएटल


Monday, July 27, 2020

हर एक मास्क फले

सुनने के लिए यहाँ क्लिक करें:

हर एक मास्क फले
महामारी भाग चले
फिर से हो जग में 
वैसी ही सुबहें 
वैसी ही शाम ढले

घरों से प्राणी
सड़कों पे निकले
होके वो मस्त चलें

मुरझाते बच्चे
हर्षाए फिर से
खेलें वो मिल के गले

दुनिया में सब की
अच्छी हो ज़िन्दगी 
कोई न ग़म में पलें

(साहिर से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय । 26 जुलाई 2020 । सिएटल

क़िस्सा एक फ़ोन का

हमेशा की तरह आज फिर मैं अपनी मम्मी को शाम पाँच बजे पोखर पर घुमाने ले गया। वहाँ कुछ बतखें और कनाडियन गीज़ पानी में अंदर-बाहर होते रहते हैं। मम्मी को यह सब देखना अच्छा लगता है। वे वहाँ रखी कुछ कुर्सियों में से एक पर बैठ कर खूब आनन्द उठातीं हैं। 


मैं तीन तौलिये ले जाता हूँ। दो हथ्थों पर रखता हूँ। एक पर वे बैठ जातीं हैं। महामारी में एहतियात ज़रूरी है। 


मैं पोखर के चक्कर लगाता हूँ। सात बजे तक। एक बार वजन के साथ। दाएँ हाथ में पच्चीस पाउंड। बाएँ में बीस। एक बार बिना वजन के। मुझे डायबीटीज़ है। चलना मेरे लिए लाभदायक है। वजन उठाने से दिल की धड़कन भी बढ़ती है। और हड्डियाँ भी मज़बूत होतीं हैं। 


कुर्सियाँ आठ हैं। अलग-अलग स्थान पर। कहीं दो। कहीं तीन। मम्मी के सिवाय कोई नहीं बैठता है। 


घूमने भी इक्का-दुक्का लोग आते हैं। इतना ख़ूबसूरत नजारा है। कुछ के लिए घर के ठीक सामने है तो कुछ के लिए दो कदम की दूरी पर, जैसे हमारे लिए।  फ़व्वारा भी है। हरे-भरे पेड़ हैं। लेकिन सब या तो पचास-साठ मील दूर पहाड़ों में गए होंगे। या फिर नेटफ्लिक्स पर कुछ देख रहे होंगे। मम्मी और मैं भी लॉकडाऊन से पहले मंदिर ही जाते थे। यहाँ कभी-कभार शनिवार की दोपहर आ जाते थे। अब तो रोज़ आते हैं। 


जो भी लोग मिलते हैं उनसे औपचारिक अभिवादन होता है। बाद में कहीं मिलें तो पता भी नहीं चले कि पहले कहीं देखा है।  नाम पूछना-बताना तो बहुत दूर की बात है। 


आज एक तीस-बत्तीस वर्ष का युवक एक कुर्सी पर बैठा लेपटॉप पर कुछ काम कर रहा था। उसने मेरी तरफ़ देखा तक नहीं। सो हैलो-हाय भी नहीं हुई। 


दो-चार फेरों के बाद मैंने देखा कि कुर्सी ख़ाली है। पास से गुज़रा तो देखा उसका फ़ोन कुर्सी पर ही छूट गया था। 


सोचा उसे जल्दी ही अहसास हो जाएगा और वो वापस आकर ले जाएगा। आजकल फ़ोन के बिना एक पल का जीना भी मुश्किल हो जाता है। 


कई फेरे हो गए। कोई लेने नहीं आया। मम्मी को बहुत चिंता होने लगी। मैंने समझाया आप क्यों फ़िक्र कर रहीं हैं? उसका फ़ोन है। वो जाने और उसका काम। आप न परेशान हों। 


मुझे लगा यदि उसे याद नहीं उसने फ़ोन कहाँ छोड़ा है तो वो किसी दूसरे के फ़ोन से इसे कॉल करेगा और मैं उसे उठा लूँगा और उससे बात करके उसे दे दूँगा। इस अपार्टमेंट काम्प्लेक्स के ज़्यादातर निवासी या तो शादीशुदा हैं या किसी रूममेट के साथ रहते हैं। 


कोई घंटी नहीं बजी। 


मम्मी ने कहाँ देख तो सही उस पर उसका नाम लिखा होगा। मैंने अपने फ़ोन पर लॉक स्क्रीन पर मेरा नाम, फ़ोटो और ऑफिस का नम्बर लगा रखा है ताकि जिस भले आदमी को मिले, कम से कम उसे लौटने में आसानी तो हो। ऑफिस के नम्बर पर कोई फ़ोन आता है तो वह लैपटॉप पर बज जाता है। न उठाओ तो मैसेज भी छोड़ा जा सकता है। सारी जानकारी ईमेल पर आ जाती है। 


मैंने देखा। लॉकस्क्रीन पर एक तीन-चार माह के बच्चे की फ़ोटो थी। अनलॉक करने के लिए अंगूठे के निशान या पासकोड माँग रहा था। इमरजेंसी नम्बर भी सेटअप नहीं किया हुआ था जिसे फ़ोन किया जा सके। 


ग़नीमत से न पढ़ें हुए टेक्स्ट मेसेज लॉकस्क्रीन पर पढ़ें जा सकते हैं। किसी का टेक्स्ट पढ़ना उचित नहीं है। लेकिन यहाँ कोई तो जानकारी हासिल करनी थी। सो मैंने देखा एक किसी मुग्धा का टेक्स्ट था। मुझे याद आया कि पास के ही किसी एक अपार्टमेंट के दरवाज़े पर दो नाम लिखे थे: कमल-मुग्धा। 


आमतौर पर यहाँ अमेरिका में घर के बाहर नाम की तख्ती लगाने का प्रचलन नहीं है। सब गोपनीयता बरतना चाहते हैं। लेकिन क़िस्मत से इन्होंने तख्ती लगा रखी थी। आमतौर पर मैं पढ़ता नहीं। लेकिन मम्मी चूँकि वॉकर के साथ धीरे-धीरे चलतीं हैं सो मेरी नज़र पढ़ गई थी। 


मैंने उनका दरवाज़ा खटखटाया। कमल ने खोला। उसकी गोद में तीन-चार माह का बच्चा था।  मैंने कहा कि आप अपना फ़ोन भूल गए थे। उसने लिया, धन्यवाद बोला और दरवाज़ा बन्द कर दिया। 


(कमल-मुग्धा असली नाम नहीं हैं। घटना सच्ची है।)

राहुल उपाध्याय । 26 जुलाई 2020 । सिएटल 


Sunday, July 26, 2020

उसे

उसे मेरी कविताएँ पसन्द थीं

और मैं भी

मुझे उसकी हँसी पसन्द थी

और वह भी


उसे मेरी कविताएँ याद हैं

मुझे उसकी हँसी 


राहुल उपाध्याय । 26 जुलाई 2020 । सिएटल


जाने वो कैसे रोग थे जिनका

सुनने के लिए यहाँ क्लिक करें:

http://tinyurl.com/CovidShayari


जाने वो कैसे रोग थे जिनका

जल्द उपचार मिला 

हमने तो जब टीका माँगा 

वादों का अम्बार मिला


काम से जब छुट्टी चाही तो

जॉब ही छूट गई

नेताओं के भाषण सुनें तो

आस ही टूट गई 

भटका दर-दर इधर-उधर 

बंद हर द्वार मिला


बिछड़ गया हर साथी कहकर

है दो दिन की बात

किसकी हिम्मत है जो थामे 

बीमारों का हाथ

हमको तो आईना तक 

देता फटकार मिला


इसको ही जीना कहते हैं तो 

यूँही जी लेंगे

उफ़ न करेंगे मास्क पहनेंगे 

हाथ धो लेंगे

जीवन से अब घबराना कैसा

जीवन सार मिला 


(साहिर से क्षमायाचना सहित)

राहुल उपाध्याय । 26 जुलाई 2020 । सिएटल 


इतवारी पहेली: 2020/07/26


इतवारी पहेली:


गिन लो, कोई न मिलेगा जो न डरे ### #

हम तो क्या, डरते हैं खुद इनके ## ## #


दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:

हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya


आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 


सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 2 अगस्त को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 26 जुलाई 2020 । सिएटल

हल: नागिन से/नाग इन से

Wednesday, July 22, 2020

अब हम मौसम की बात करने लगे हैं

अब हम मौसम की बात करने लगे हैं


यानी 

पेट भरा हुआ है 

सर पर छत है

और तन पर कपड़ा है

—-<>—

अच्छे दिनों की हमें चिन्ता नहीं है 

और हो भी क्यों 

हमारे लिए तो ये एक जुमला है

मनोरंजन का साधन है


मोबाइल में जोक 

ढूँढेंगे 

पढ़ेंगे 

फ़ॉरवर्ड करेंगे 


फिर चैन की साँस लेकर 

नेटफ्लिक्स पर

बहुचर्चित वेब सीरीज़ देखेंगे


भीड़ से अलग होकर जीना आता नहीं 


अंततोगत्वा 

किसी न किसी भीड़ से जुड़ ही जाते हैं 

—-<>—

अब हम मौसम की बात करने लगे हैं


यानी 

पेट भरा हुआ है 

सर पर छत है

और तन पर कपड़ा है


राहुल उपाध्याय । 22 जुलाई 2020 । सिएटल 


Tuesday, July 21, 2020

डॉक्टर को देखा

सुनने के लिए यहाँ क्लिक करें:

http://tinyurl.com/CovidShayari


डॉक्टर को देखा

तूने जब-जब हुआ बुखार

अस्पताल को दौड़ा

तू जब-जब हुआ बीमार 

एक बदनसीब हूँ मैं

मुझे नहीं पूछा एक बार


सूरज की पहली किरणों को

देखा तूने अलसाते हुए

रातों में तारों को देखा

सपनों में खो जाते हुए

यूँ किसी न किसी बहाने

तूने देखा सब संसार


मास्क की क़िस्मत क्या कहिए 

होंठों पे तूने लगाया है

पानी की क़िस्मत क्या कहिए

तूने अंग लगाया है

हसरत ही रही मेरे दिल में

पाऊँ तेरी आँखों में प्यार


(इंदीवर से क्षमायाचना सहित)

राहुल उपाध्याय । 20 जुलाई 2020 । सिएटल


Monday, July 20, 2020

अभी ही जाओ छोड़ कर

सुनने के लिए यहाँ क्लिक करें:

अभी ही जाओ छोड़ कर
कि हो रहा बुरा अभी

मार्च अप्रैल से आई हो
क़हर बन के छाई हो
मास्क भी लगा लिए
हाथ  भी   धो  लिए
सेनिटाईजर भी ले आए हैं
मगर न काम आए हैं
मैं थोड़ी देर जी तो लूँ, 
निडर हो के जी तो लूँ 
अभी तो कहीं गया नहीं
अभी कोई आया नहीं 

करोड़ों तिलमिला उठे 
करोड़ों छटपटा उठे
बस अब न मुझको टोकना
न मुझे तुम्हें है रोकना 
अगर जो अब गई नहीं
लुट जाएँगे यहाँ सभी
कुछ दफ़्न हो जाएँगे
कुछ ख़ाक हो जाएँगे 
लो जाओ तुम इसी घड़ी
बढ़ाओ और न बेबसी 

असाध्य रोग डाल के
बड़े-बूढ़ों को मार के
जो रोज़ यूँही आओगी
क़हर बन के छाओगी 
कि ज़िंदगी की राह में
जवाँ दिलों की चाह में
कई दबाव आएंगे
जो हम को आज़माएंगे
ठीक से सुनो मुझे
ये हू्क्म है इल्तिजा नहीं

अभी ही जाओ छोड़ कर
कि हो रहा बुरा अभी

(साहिर से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय । 19 जुलाई 2020 । सिएटल

Saturday, July 18, 2020

अगर एन-आर-आई, तुझको पहचान जाते

सुनने के लिए यहाँ क्लिक करें:

https://tinyurl.com/RahulParodies


अगर एन-आर-आई, तुझको पहचान जाते

ख़ुदा की क़सम तुम्हें ग्रेजुएट न करते

जो मालूम होता, ये अंज़ाम-ए-तालीम

तो तुम को पढ़ाने की ज़ुर्रत न करते


फूल जैसा पाला, खार बन के निकले

तेज़ इतने हो कि, धार बन के निकले

जो उठ जाते पहले ही आँखों से पर्दें 

तो भूले से भी कॉलेज में दाखिल न करते


मेरा दिल था शीशा, हुआ चूर ऐसा

के अब लाख जोड़ूँ तो जुड़ न सकेगा

तू पत्थर का बुत है पता 'गर ये होता

तो कुछ कहने की हिमाक़त न करते


जिन्हें तुमने समझा मेरी बेवकूफ़ी

मेरी ज़िन्दगी की वो मजबूरियाँ थीं

हाँ, पढ़ाई तुम्हारी इंग्लिश में ही कराई

क्यूंकि सरकार ने तो पहनीं चूड़ियाँ थीं

अगर सच्ची होती शिक्षा तुम्हारी

तो घबरा के तुम यूँ शिकायत न करते


जो हम पर है गुज़री हमीं जानते हैं

सितम कौन सा है नहीं जो उठाया

निगाहों में फिर भी रही तेरी सूरत

हर एक सांस में तेरा पैगाम आया

अगर जानते तुम ही इलज़ाम दोगे

तो भूले से भी तुम्हें शिक्षित न करते


(प्रेम धवन से क्षमायाचना सहित)

राहुल उपाध्याय । 30 नवम्बर 2007 । सिएटल 


Friday, July 17, 2020

हैरत होती है

हैरत होती है 

जब देखता हूँ 

दो नाव में 

पाँव रख

खुद को खेते हुए 

कभी कुछ

तो कभी कुछ को

खोते हुए 


कभी-कभी तो

सोचता हूँ 

कि माँ-बाप

इतना जीते क्यूँ हैं 

जीते हैं 

तो बीमार क्यूँ होते हैं 

और बीमार होते हैं 

तो ख़ुद का ख़्याल 

क्यों नहीं रख पाते हैं 


मैं यहाँ हूँ 

बीवी-बच्चों के पास

वे वहाँ हैं

नितांत अकेले


माँ

गुज़र गईं

ख़ुद गिर गए 


क्या कोई व्यावसायिक सेवा है

जो उन्हें 

दे सके दवा

कर सके दुआ

पिला सके पानी

बदल सके डायपर


मैं हूँ 

पर नहीं हूँ 


आय-आय-टी पास हूँ 

एम-बी-ए भी हूँ 

आय भी है लाख डॉलर से ऊपर

लेकिन किसी रिक्शा चालक से

भी ज़्यादा मजबूर हूँ मैं


बंधुआ मज़दूर नहीं 

पर उससे कम बंदी नहीं 

न सलाख़ें हैं

न हथकड़ियाँ 

न बंधन कोई 

न पाँव में हैं कोई बेड़ियाँ 


परदेस छोड़ने में 

कोई रोक-टोक नहीं 

पर वापस न आ सका

तो सब चौपट हो जाएगा

न आय-आय-टी

न एम-बी-ए

कुछ काम आएगा 


धोबी का कुत्ता

न घर का

न घाट का

रह जाएगा


राहुल उपाध्याय । 17 जुलाई 2020 । सिएटल 


Tuesday, July 14, 2020

होटल में क़ैद

ग़नीमत है 

लोग

घरों में आज भी आज़ाद हैं

और होटलों में क़ैद 


जो खुद स्वतंत्र नहीं हैं

यह तय करने के लिए

कि वे किसके साथ हैं 

वे जनता का साथ क्या देंगे


मैं तो कहता हूँ 

कि एक क़ानून बनना चाहिए 

संविधान में संशोधन होना चाहिए 

कि

जिस शहर में आपका घर हो

वहाँ आप होटल में न रह सके 


इससे 

दो बातें होंगी

एक तो लोग 

ज़बरदस्ती 

खूँटे से बंधने से बच जाएँगे 

और 

दूसरा 

अवैध सम्बंध कम स्थापित होंगे 


राहुल उपाध्याय । 13 जुलाई 2020 । सिएटल