Friday, July 17, 2020

हैरत होती है

हैरत होती है 

जब देखता हूँ 

दो नाव में 

पाँव रख

खुद को खेते हुए 

कभी कुछ

तो कभी कुछ को

खोते हुए 


कभी-कभी तो

सोचता हूँ 

कि माँ-बाप

इतना जीते क्यूँ हैं 

जीते हैं 

तो बीमार क्यूँ होते हैं 

और बीमार होते हैं 

तो ख़ुद का ख़्याल 

क्यों नहीं रख पाते हैं 


मैं यहाँ हूँ 

बीवी-बच्चों के पास

वे वहाँ हैं

नितांत अकेले


माँ

गुज़र गईं

ख़ुद गिर गए 


क्या कोई व्यावसायिक सेवा है

जो उन्हें 

दे सके दवा

कर सके दुआ

पिला सके पानी

बदल सके डायपर


मैं हूँ 

पर नहीं हूँ 


आय-आय-टी पास हूँ 

एम-बी-ए भी हूँ 

आय भी है लाख डॉलर से ऊपर

लेकिन किसी रिक्शा चालक से

भी ज़्यादा मजबूर हूँ मैं


बंधुआ मज़दूर नहीं 

पर उससे कम बंदी नहीं 

न सलाख़ें हैं

न हथकड़ियाँ 

न बंधन कोई 

न पाँव में हैं कोई बेड़ियाँ 


परदेस छोड़ने में 

कोई रोक-टोक नहीं 

पर वापस न आ सका

तो सब चौपट हो जाएगा

न आय-आय-टी

न एम-बी-ए

कुछ काम आएगा 


धोबी का कुत्ता

न घर का

न घाट का

रह जाएगा


राहुल उपाध्याय । 17 जुलाई 2020 । सिएटल 


इससे जुड़ीं अन्य प्रविष्ठियां भी पढ़ें


0 comments: