मैं
अब दिल छूने वाली कविता नहीं लिखता
ताकि कहीं कोई संक्रमित न हो जाए
मैं
अब हँसने-हँसाने वाली कविता नहीं लिखता
ताकि ठहाका मारने के लिए
कहीं कोई मास्क उतारे
और लेने के देने पड़ जाए
मैं
अब रोने-रुलाने वाली कविता भी नहीं लिखता
ताकि आँसू पोंछने के लिए
कहीं कोई अनधोए हाथ
आँखों को न छू लें
मैं
अब कविता ही नहीं लिखता
ताकि कहीं कुछ हो
और मेरी कविता
उसकी ज़िम्मेदार
ठहराई जाए
राहुल उपाध्याय | 4 जुलाई 2020 | सिएटल
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