Saturday, July 4, 2020

मैं अब कविता नहीं लिखता

मैं 

अब दिल छूने वाली कविता नहीं लिखता 

ताकि कहीं कोई संक्रमित न हो जाए 


मैं 

अब हँसने-हँसाने वाली कविता नहीं लिखता 

ताकि ठहाका मारने के लिए 

कहीं कोई मास्क उतारे

और लेने के देने पड़ जाए 


मैं 

अब रोने-रुलाने वाली कविता भी नहीं लिखता 

ताकि आँसू पोंछने के लिए

कहीं कोई अनधोए हाथ

आँखों को न छू लें


मैं 

अब कविता ही नहीं लिखता 

ताकि कहीं कुछ हो 

और मेरी कविता 

उसकी ज़िम्मेदार

ठहराई जाए 


राहुल उपाध्याय | 4 जुलाई 2020 | सिएटल 


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