जो ऊपर छाया है
वो छाया नहीं
और जो नीचे है
वह परछाई है
पर छाई नहीं
ऐसी कई बातें हैं
जो मुझे
कभी समझ आईं नहीं
जिसका सब अंदर है
वह समंदर क्यूँ है?
जो मन से दूर नहीं
वह मन्दिर में क्यूँ है?
क्या
पश्चाताप के
पश्चात आप
पश्चाताप
नहीं कर सकते?
जब किसी नर्तकी से कहूँ
नाच ना
और नाच-ना-जाने-आँगन-टेढ़ा से कहूँ
नाच ना
तो एक ही वाक्य के
भिन्न मतलब क्यों निकलते हैं?
जब कान खड़े हो सकते हैं
तो ये बैठते-सोते कब हैं?
दिल कहीं
और दिल की गति
नापी कहीं जाती है
इस दीवाने को
यह दीवानगी
समझ नहीं आती है
मेरा जन्मदिन
हर सातवें दिन आता है
तो फिर साल में एक दिन ही
क्यों मनाया जाता है?
जो पहले आती है
वो छोटी कैसे?
और बाद वाली
बड़ी क्यों?
मातृभाषा का मात्रा के साथ
यह खिलवाड़ समझ नहीं आता है
आज़ादी के सब आज आदी नहीं
सम्बन्धों में सम नहीं
सब क्यों बन्ध जाते हैं?
राहुल उपाध्याय । 31 जुलाई 2020 । सिएटल
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