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देश से हमको बिछड़े हुए
एक ज़माना बीत गया
अपना मुकद्दर बिगड़े हुए
एक ज़माना बीत गया
देश में पढ़ के इन आँखों ने
कितने ख्वाब सजाए थे
जिस गुलशन में हमने मिलके
गीत वफ़ा के गाए थे
उस गुलशन को उजड़े हुए
एक ज़माना बीत गया
किस्मत हमको ले आयी
है अपनों से बेगानों में
वापस कैसे जाए अब
उन अपनों की बाँहों में
जिन को पराया कहते हुए
एक ज़माना बीत गया
(गुलशन बावरा से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय । 10 जुलाई 2020 । सिएटल
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