Saturday, August 24, 2013

कृत्रिम दीप और कृत्रिम फूल

कृत्रिम दीप
और कृत्रिम फूल
कब तक झोंकेंगे
भक्त की आँखों में धूल?

एक न एक दिन हटेगी नज़रों से 'वूल'
और नज़र आयेगा 'नेचर' का 'रूल'
कि जीवन-मरण दोनों के बीच
हैं सुख-दु:ख नवल पौधों के बीज
कभी एक फलेगा तो कभी एक सूखेगा
ये क्रम न रूका है न कभी रो के रूकेगा

माथा टेकने से नहीं मिटते हैं रोग
एक न एक दिन समझ जाएंगे लोग
कि सुख-दु:ख है मन की एक अनुभूति
सभ्य समाज की एक अनिवार्य रीति

वो पल जो हमें देता है सुख
उसी पल में हम खोज लेते हैं दु:ख
बेटा हुआ तो बहुत खुशी हुई
पर साथ ही साथ चिंता भी हुई
कि बढ़ा हो के क्या ये बड़ा बनेगा?
ऊँचा ओहदा क्या पा के रहेगा?

24 अगस्त 2013.
सिएटल । 513-341-6798

Wednesday, August 7, 2013

अबलाशक्ति

मैं इतनी असहाय हूँ
कि कोई चाहे भी तो
मेरा हाथ नहीं थाम सकता


चाचा
मेरे हाथ
पीले नहीं कर सकते


मैं
हाथ हिला कर
बॉलकनी से 'बाय' नहीं बोल सकती


किसी के गले नहीं लग सकती
चरणस्पर्श नहीं कर सकती


ऐसी हालत में
मेरे लिये
अपने पैरों पे
खड़े होने के अलावा
और रास्ता ही क्या है?


8 अगस्त 2013
मुम्बई । 98713-54745

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'बाय'  = bye

Tuesday, August 6, 2013

बाएँ हाथ का खेल


आए दिन लोग अपना हाथ दिखाते रहते हैं
मैं क्या दिखाऊँ?
मेरे तो हाथ ही नहीं हैं


और जनमपत्री?
मैं अपनी जन्मतिथि
स्थान
अक्षांश
रेखांश
कुछ नहीं जानती


जो जानते थे
वे हैं नहीं
और जो हैं
उन्हें इससे कोई सरोकार नहीं


कहते हैं
जनमपत्री
हस्तरेखाएँ
ज्योतिषी आदि
सब पुराने खयालात की बातें हैं
बड़े-बूढ़ों का शगल है
तुम्हें अपने आप पर भरोसा रखना चाहिए
तुम्हारा भविष्य तुम्हारे हाथ में है


7 अगस्त 2013
दिल्ली । 98713-54745

Monday, August 5, 2013

बहुत ही खूबसूरत हैण्डराईटिंग

बड़े दिनों से
हम
एक दूसरे को
ई-मेल्स लिख रहे हैं
और एक-दूसरे को
जानने-पहचानने
समझने-बूझने
और
रूठने-मनाने
लगे हैं


तुम्हारी
स्माईलिस,
खास ईमोटिकॉन्स,
एक्सक्लेमेशन्स,
और एक्स्ट्रा डॉट्स
इन सबसे तुम्हारा
प्यार छलकता है
एक छवि उभरती है


लेकिन
मैं चाहता हूँ
कि तुम मुझे एक ख़त लिखो
वही पुराने ज़माने वाला
कलम और कागज़ वाला


मैं जानना चाहता हूँ
कि तुम्हारे हाथों की लिखावट कैसी होगी?
कहते हैं कि हैण्डराईटिंग से
व्यक्ति का व्यक्तित्व भी छलकता है


मैं भी तो देखूँ
कि तुम्हारी पर्सनालिटी कैसी है?


(और एक बात और
जो मैंने उसे बताई नहीं
कि
सुना है
कि लड़कियाँ अक्सर ऐसे ख़तों में
दिल, तीर, तितलियाँ, फूल, सितारें आदि
बनाती हैं
मैं देखना चाहता था कि
वो मेरे लिये क्या बनाएगी?
क्या सब एक ही रंग की स्याही में लिखेगी?
या कुछ लाल होगा, कुछ हरा, कुछ नीला?
क्या कुछ हाशिए में भी लिखेगी?
हिंदी में लिखेगी? कि अंग्रेज़ी में?)


दो दिन बाद ख़त आया
दिल की धड़्कन थाम के
मैंने सब से आँख बचाकर उसे खोला
और पाया एक पन्ना
बिल्कुल कोरा


और फिर
एक और पन्ना
जिस पर बहुत ही खूबसूरत हैण्डराईटिंग में लिखा था
देख ली मेरी हैण्डराईटिंग?
मेरे हाथ नहीं है
जो तुम पढ़ रहे हो
वो लिखावट मेरे पैर की है
अंगूठों में कलम दबा कर
लिखती हूँ मैं
कैसी लगी?
हाँ और ये भी बताना कि मेरी पर्सनालिटी कैसी है


6 अगस्त 2013
दिल्ली । 88004-20323

Sunday, August 4, 2013

अप्रत्याशित घटना

कैसे
कोई
किसी को
छोड़ के
चल देता है
रोता हुआ, बिलखता हुआ
वापस आने का दिन तय किये बिना


दो महीने? दो साल? तीन साल?
न जाने फिर कब वापस आना होगा


आते वक़्त
जितना उत्साह होता है
उतना ही
या उससे भी अधिक
दु:ख होता है
जाते वक़्त


हर आवागमन
फिछले आवागमन से
अधिक दुखदायी होता है


घर में धीरे-धीरे चीज़ें कम होने लगती हैं
दवाईयों की डब्बियाँ बड़ने लग जाती हैं
डॉक्टरों के पर्चों के पुलिंदे फूलने लगते हैं
दवाईयों की बंदी लग जाती है
और दवाईवाला घर का सदस्य बन जाता है


विवशता
अनिवार्य हो जाती है
अनिश्चितता
रोज़ सुनिश्चित हो जाती है
एक अप्रत्याशित घटना का
घटना प्रत्याशित हो जाता है


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ज़िंदगी एक पहेली
मौत एक कविता
मानता है जो
'आनंद' में सदा
रहता है वो


4 अगस्त 2013
मुम्बई । 98713-54745
         

Thursday, August 1, 2013

मैं कौन हूँ?


मैं कौन हूँ?

मैं पिलाता हूँ लेकिन मैं बरसता नहीं
मेघों की माफ़िक मैं गरजता नहीं

अरे काफ़ी है कॉफ़ी बने रिस-रिस के
मेरे रिसने से किसी का कोई फ़ायदा नहीं

इसलिये जुड़ता नहीं, रहता बे-रिश्ता हूँ मैं
रिश्ता है, रिसता हूँ
बा-रस्ता हूँ मैं
एक मुकाम पे बैठा बरिस्ता हूँ मैं

राहुल उपाध्याय | 2 अगस्त 2013 | मुम्बई