Tuesday, August 6, 2013

बाएँ हाथ का खेल


आए दिन लोग अपना हाथ दिखाते रहते हैं
मैं क्या दिखाऊँ?
मेरे तो हाथ ही नहीं हैं


और जनमपत्री?
मैं अपनी जन्मतिथि
स्थान
अक्षांश
रेखांश
कुछ नहीं जानती


जो जानते थे
वे हैं नहीं
और जो हैं
उन्हें इससे कोई सरोकार नहीं


कहते हैं
जनमपत्री
हस्तरेखाएँ
ज्योतिषी आदि
सब पुराने खयालात की बातें हैं
बड़े-बूढ़ों का शगल है
तुम्हें अपने आप पर भरोसा रखना चाहिए
तुम्हारा भविष्य तुम्हारे हाथ में है


7 अगस्त 2013
दिल्ली । 98713-54745

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2 comments:

Anonymous said...

इस कविता को पढ़कर आपकी कविता "मुक़द्दर" की lines याद आयीं:

"मेरे हाथों की लकीरों में अगर मुक़द्दर होता
मैं अपने ही हाथों के हुनर से बेखबर होता"

और "हाथों के हाथ" की last line भी याद आयी :

"और हम हैं कि हाथों के हाथ खा रहे मात हैं"

हाथों से कितनी बातें जुडी हुई हैं और हम हाथों के होने को for granted लेते हैं। यह कविता (और "बहुत ही खूबसूरत हैण्डराईटिंग" कविता) हमें याद दिलाती है कि हर किसी के साथ ऐसा नहीं है। हमें humble और grateful होना चाहिए।

कविता पढ़कर मन में यह बात भी आई कि हम हाथों की रेखाएं और जन्मपत्री में लिखा भविष्य (अगर मान लें कि वहां लिखा होता है) क्यों जानना चाहते हैं? Curiosity के लिए? इसलिये कि अगर पूर्व-निर्धारित भविष्य में कोई मुश्किल लिखी हो तो हम उसे पहले ही बदल दें - कोई उपवास, दान या पूजा कर लें? अगर सुख का समय लिखा हो तो उसका maximum लाभ उठा लें? शायद भविष्य जानने की इच्छा का main reason डर है और यह कि हम दुःख से बच सकें, भविष्य को बदल सकें, और जीवन को मन-चाही दिशा दे सकें।

लेकिन जिनके पास हाथों की रेखाएं या जन्मपत्री नहीं हैं, वो तो अपने भविष्य के बारे कोई pre -conceived बातें नहीं जानते। उनके हिस्से में जब दुःख आता है तो वो भविष्य "पता" ही नहीं करवा सकते - फिर वो क्या करते हैं? मुझे लगा की वो भविष्य जानते नहीं हैं, इसलिए उससे डरते भी नहीं हैं। जब दुःख आता है, वो दुःख को स्वीकार करते हैं और दूर करने के लिए मेहनत करते हैं, ईश्वर से सहायता की प्रार्थना करते हैं। जब उन्हें सुख मिलता है तो वो उसे भी स्वीकार करते हैं और खुश होते हैं, grateful feel करते हैं।

यह कविता हमें एहसास दिलाती है कि सुख-दुःख का सामना करने के लिए और जीवन को मन-चाही दिशा देने के लिए भविष्य का ज्ञान ज़रूरी नहीं है - बस ईश्वर पर और अपने पर भरोसा होना चाहिए।

Anonymous said...

कविता अच्छी लगी, राहुलजी!