Sunday, April 30, 2023

इतवारी पहेली: 2023/04/30


इतवारी पहेली:


सब कुछ बढ़िया है पर ### ##

हल्दीराम का खाना # ## ##


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya



आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 

सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 7 मई 2023 को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 30 अप्रैल 2023 । सिएटल 




Saturday, April 29, 2023

आँखों में जिनकी डूब के

आँखो में जिनकी डूब के सपने सजाए थे 

उनसे ही बच-बचा के अब दिन बिताएंगे 


तरसे थे जिनके साथ को अरबों-हज़ारों साल 

मिल भी गए वो आज तो नज़रें बचाएंगे


सह लेते दर्द इश्क़ के होंठों को सी के आज 

शायर की बात और है, गीत गाएँगे 


घुटनों पे चल के आए न चौखट पे आपके 

ख़ुद्दारी आई साथ थी ख़ुद्दार जाएँगे 


हाथो में आज नहीं है किसी के बागडोर 

पर्दा हम अपने आप पे ख़ुद गिराएंगे 


राहुल उपाध्याय । 3 मार्च 2022 । सिएटल 

https://youtu.be/tMkJgxYqJXM





Tuesday, April 25, 2023

जगन्नाथ कहते हैं जिनको सभी

जगन्नाथ कहते हैं जिनको सभी

प्रलय चाहे आ जाए बचाए वही


डर के नहीं मैं रहता हूँ जग में 

डरता नहीं मैं किसी भी शै से

आँधी आए तूफ़ाँ डराते नहीं 


आँखों में जिनकी है प्यार देखा

वो ही हैं मेरे, मेरे वो देवा

हाथों में जिनसे शक्ति मिली


बदल जाए दुनिया बदले नहीं 

प्रेम-प्यार उनका बदले नहीं 

मैं पाऊँ जन्नत यहाँ पे यहीं 


राहुल उपाध्याय । 23 अप्रैल 2023 । सिएटल 

https://youtu.be/Pdg_-Gqou4s







कहानियाँ

आज उनमें से

किसी न किसी का 

जन्मदिन ज़रूर होगा

जिनके लिए मैं कभी बेचैन रहता था

महीनों पहले सोचता था

इस बार

क्या दूँ 

क्या खिलाऊँ

कहाँ ले जाऊँ 

क्या दिखाऊँ 


अब जन्मदिन तो क्या 

उनके नाम तक याद नहीं 


कहानियाँ कितनी जल्दी नया मोड़ ले लेती हैं


राहुल उपाध्याय । 25 अप्रैल 2023 । सिएटल 



उसका शहर

आज टीटी खेलते वक्त 

एक बंदा उसके शहर का मिल गया

मानो मैं उससे मिल लिया

बातों में इतना खो गया कि

पाईंट्स भी गिनना भूल गया 

लगा उसी के साथ खेल रहा हूँ 

उससे जीतने का मन न हुआ 

उसके शहर के चप्पे-चप्पे की बात की

लगा कि जैसे वह अभी-अभी 

उस 

मोड़ 

गली

मोहल्ले 

दुकान

कॉलेज 

से गुज़री है

जिसकी हम बात कर रहे हैं 


मेरे उत्साह को देख

वह पूछने लगा

आप किस एरिया में रहते हो?

कैसे कहता कि

मैं उस शहर का नहीं 

लेकिन मेरी जान

उस शहर के चप्पे-चप्पे में है 

जहाँ-जहां वो साँस लेती है 

जहाँ-जहां से उसकी स्कूटी गुज़रती है 

जहां-जहां रूक के वो 

कुछ रंग-बिरंगा 

कुछ खट्टा-मीठा लेती है 

और बजट देख के 

कुछ देख के वापस रख देती है

जहां-जहां वो माथा टेकती है 

जहां-जहां वो मन मार के रह जाती है 

जहां-जहां वो सुखी जीवन के सपने बुनती है 


राहुल उपाध्याय । 25 अप्रैल 2023 । सिएटल 





Friday, April 21, 2023

यूएस से लौट के आया हूँ

जब पढ़ लिया मैंने भारत में

भारत में मेरे भारत में 

तब जाकर मैं विदेश आया

कुछ गहने आदि थे बेचे

कुछ लोन जुटा पढ़ने आया

पढ़ने आया और पढ़ मैं खूब गया

पढ़ने में मैं अव्वल आया

पढ़-लिख कर मुझे नौकरी मिली

ख़ुशियों भरा संसार मिला

नौकरी भी ऐसी कि न नौकरी लगी

ऐसी भली और ऐसी हसीं

घर बैठे ही वेतन पाने लगा

काम भी तो था कुछ ख़ास नहीं 

इमेल पढ़ो, इमेल लिखो

दो-चार लोगों से बात करो

स्टेटस दो, स्टेटस लो

बस ऐसे ही दिन भर काम करो


है काम जहां पे ख़ास सदा

मैं हार के वहाँ से आया हूँ 

यूएस से लौट के आया हूँ 

यूएस की बात सुनाता हूँ 


अच्छे-बुरे का भेद नहीं 

जो चाहा उसे निकाल दिया 

कल तक था जिसको ख़ास कहा 

उसे आज झट से निकाल दिया 

जब काम था मुझसे काम लिया

अब बेकार मैं ख़ुद को पाता हूँ 

यूएस से लौट के आया हूँ 

यूएस की बात सुनाता हूँ 


मिलते थे मुझे डॉलर तो क्या

मैं काम भी तो अच्छा करता था

कभी शाम को हो मीटिंग कोई 

हर मीटिंग में शामिल रहता था

ये क्या हुआ, ये क्यों हुआ 

बस सोच के मैं रह जाता हूँ 

यूएस से लौट के आया हूँ 

यूएस की बात सुनाता हूँ 


इक बात अभी तक ना समझी

ये एच-आर भी क्या-क्या करता है 

जिसे आज ये फ़ायर करता है 

उसे कल वो हायर करता है 

प्रश्न एक नहीं हैं हज़ार मेरे

और जवाब कहीं से न पाता हूँ 

यूएस से लौट के आया हूँ 

यूएस की बात सुनाता हूँ 


दिन दहाड़े बंदूक़ें चलतीं हैं

दिमाग़ ठिकाने न रहते हैं 

कब कौन कहाँ पर बरस पड़े

डर-डर के सब लोग रहते हैं 

घर पर न कोई बुलाता है 

ख़ुद जाऊँ तो गोली खाता हूँ 

यूएस से लौट के आया हूँ 

यूएस की बात सुनाता हूँ 


राहुल उपाध्याय । 21 अप्रैल 2023 । सिएटल 


मेरे परिवार में

मेरे 

परिवार में

आसपास में

समाज में

सिर्फ़ विधवाएँ हैं

विधुर बहुत कम


जबकि दिवंगत 

तानाशाह थे


राहुल उपाध्याय । 21 अप्रैल 2022 । सिएटल 


Thursday, April 20, 2023

पल-पल चले गन-वन

पल-पल चले गन-वन सुलग-सुलग जाए मन

लगे आज इस दुनिया में नहीं है अमन 


मसला हो कोई मारना किसी को

हल तो नहीं है मारना किसी को

हाय करे अब क्या जतन


जब रेडियो पे चलती हैं ख़बरें 

कोई मर रहा है फिर आज गन से

बूँद-बूँद बरसे नयन 


(योगेश से क्षमायाचना सहित)

राहुल उपाध्याय । 20 अप्रैल 2023 । सिएटल 

Sunday, April 16, 2023

हर पहर धुन यही हम गाते हैं

हर पहर धुन यही हम गाते हैं 

हम तेरे चरणों में सुख पाते हैं 


ज़िन्दगी तुझसे ही हमने पाई है 

सब सुख-चैन मिला तुझसे है

मैं कहीं जाऊँ अकेला न रहा

तेरा हाथ रहा सदा मुझपे हैं

आग लग जाए, दीं बरसातें हैं 


जब कभी सूझे न कोई रस्ता

राह रोशन मिली तुझसे है

मैं कभी भूल भी जाऊँ तुझको

तू भला मुझको कहाँ भूले हैं 

रात ढल जाए, पौ फट जाते हैं 


जितनी हरियाली है इन बागों में

सब की सब तूने उपजाई है

कब कहाँ कौन फल पाएगा

सब की सब तूने लिखवाई है 

खेल सब तेरा, हम प्यादे हैं


राहुल उपाध्याय । 16 अप्रैल 2023 । सिएटल 


Saturday, April 15, 2023

इतवारी पहेली: 2023/03/16


इतवारी पहेली:


कोलकाता में बहुत कम घरों में ### #

और बहुत कम घरों में पूजते ## # #


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya



आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 

सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 23 अप्रैल 2023 को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 16 अप्रैल 2023 । सिएटल 




Thursday, April 6, 2023

वक़्त सब को सब सीखा देगा

वक़्त सब को सब सीखा देगा

कोई अपना ही सज़ा देगा


राज़ दिल के कहाँ छुपते

वक़्त सब को सब बता देगा


वक़्त कटता नहीं है रातों को

ख़ुद को सूरमा बड़ा बता देगा


बात अपनी नहीं वो करता

दर्द ख़ुद का वो छुपा देगा


वो है मुजरिम कि मलहम

इसका कोई नहीं पता देगा


राहुल उपाध्याय । 6 अप्रैल 2023 । सिएटल 



किस का इलज़ाम किसी पर है

किस का इलज़ाम किसी पर है

टूटी ज़िन्दगी, ज़िन्दगी पर है


मेरा आशियाँ कहीं पर है

मेरा दाना कहीं पर है 


जा के बैठो कहीं चार दिन

वो न पाओगे, वो यहीं पर है 


बात कर लो जहाँ-तहाँ जैसी 

उँगली उठनी तुम्हीं पर है


जिनको सब कहते हैं मेरे

उनका होना नहीं पर है


जिनकी राहें जुड़ीं हैं मुझसे 

उनको रहना ज़मीं पर है


राहुल उपाध्याय । 6 अप्रैल 2023 । सिएटल 


Wednesday, April 5, 2023

तुम न मानो मगर हक़ीक़त है

तुम न मानो मगर हक़ीक़त है

वाह-वाह ही नहीं ज़रूरत है 


हौसले अपने रखो बुलंद इतने

क्या क़यामत, क्या मुसीबत है


जग में आएँगे और भी आशिक़ 

एक तुमको ही ना अक़ीदत है 


पास आओ कहो मन की

क्यूँ ये झगड़ा, फ़ज़ीहत है


आज ये तो कल वो कहे 'राहुल'

बात बदलता शत-प्रतिशत है


राहुल उपाध्याय । 5 अप्रैल 2023 । सिएटल 

(अक़ीदत = श्रद्धा, भक्ति, स्नेह, मन का भरोसा, श्रद्धा, विश्वास, निष्ठा, भरोसा, एतिक़ाद, एतबार

किसी बात को सही और ठीक जान कर उस पर दिल जमाना, दिल का भरोसा, विश्वास, ख़ुलूस-ओ-मोहब्बत)

Sunday, April 2, 2023

इतवारी पहेली: 2023/04/02


इतवारी पहेली:


समोसा मिलता था तब दो का, ## #

अब न मिलेगा तुम्हें एक भी ###


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya



आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 

सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 9 अप्रैल 2023 को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 2 अप्रैल 2023 । सिएटल 




Saturday, April 1, 2023

बड़ा आसान है लिखना

बड़ा आसान है लिखना 

कि ईश्वर नहीं है 

ईश्वर होता तो लीलता न तुमको


बड़ा आसान है लिखना 

कि व्यवस्था नहीं है 

व्यवस्था होती तो गिरते न तुम


बड़ा आसान है लिखना 

और छपना पत्र-पत्रिकाओं में 

पाना पद्मश्री


राहुल उपाध्याय । 1 अप्रैल 2023 । सिएटल 


क्यूँ किसी का साथ भी


क्यूँ किसी का साथ भी

लगता है एक बोझ ही

क्यूँ किसी के साथ की

रहती है इक आस भी


आदमी जो है आदमी

कह गए कबीर दास जी

हो के भी आज़ाद वो

रहता है ग़ुलाम ही


धूप में चाहे छाँव वो

छाँव में चाहे धूप वो

मन की तृष्णा क्या करे

चाहता है हर रूप वो


आग-पानी ना बराबर 

दोनों लेकिन चाहिए 

ये है अच्छा, ये बुरा है 

दोनों लेकिन चाहिए 


पा के सब कुछ, कुछ मज़ा नहीं 

जो न पाए उदास हो

पक्का संतुलन है कहाँ 

कि न उदास हो, न निराश हो


राहुल उपाध्याय । 1 अप्रैल 2023 । सिएटल