क्यूँ किसी का साथ भी
लगता है एक बोझ ही
क्यूँ किसी के साथ की
रहती है इक आस भी
आदमी जो है आदमी
कह गए कबीर दास जी
हो के भी आज़ाद वो
रहता है ग़ुलाम ही
धूप में चाहे छाँव वो
छाँव में चाहे धूप वो
मन की तृष्णा क्या करे
चाहता है हर रूप वो
आग-पानी ना बराबर
दोनों लेकिन चाहिए
ये है अच्छा, ये बुरा है
दोनों लेकिन चाहिए
पा के सब कुछ, कुछ मज़ा नहीं
जो न पाए उदास हो
पक्का संतुलन है कहाँ
कि न उदास हो, न निराश हो
राहुल उपाध्याय । 1 अप्रैल 2023 । सिएटल
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