Sunday, July 19, 2015

कुआँ और टंकी



वो था गहरा
यह है ऊँची
वो था खुला
यह है बन्द 
उसमें थी मेहनत
यह है आसान

वहाँ बालटी-बालटी
खींचते थे हम
इसमें टोंटी घुमाई
और बूँद-बूँद भर लो गागर
(हाँ पीना हो तो आर-ओ लगाओ
नहाना हो तो कोई बात नहीं )

अब क्या बताए
क्या सही और क्या ग़लत 
बस एक बात है
कि
पहले
मन की सुनते थे
अब
नेता-अभिनेता-महात्माओं की सुनते हैं

जो उपर से आता है
जल्दी पकड़ में आता है
मन की गहराई से खींचने में 
वक़्त लगता है
परिश्रम होता है

17 जुलाई 2015
दिल्ली 

फ़ीते फट जाए तो जूते फेंका नहीं करते


फ़ीते फट जाए तो जूते फेंका नहीं करते
आग लग जाए तो भुट्टे सेंका नहीं करते

जीवन है निर्धारित, जीवन है नियमित
कभी हम ऐसा तो कभी वैसा नहीं करते

जब फँसी हो कश्ती मँझधार में किसीकी
तो देते हैं सहारा, किनारा नहीं करते

अपनों से भी गिला क्या करता है कोई
कुछ होती हैं बातें जिन्हें छेड़ा नहीं करते 

पिक्चर देखनी है तो मनपसंद देखो
एक न मिले तो दूजी देखा नहीं करते

राहुल उपाध्याय | 18 जुलाई 2015 | दिल्ली 

Saturday, July 11, 2015

न तुम हो मेरे लायक


न तुम हो मेरे लायक
न मैं हूँ तुम्हारे लायक
फिर भी हम दोनों नालायक नहीं हैं

तुम हो तो सृष्टि है
सावन में होती वृष्टि है

न तुम बटन दबाते हो
न कोई आदेश देते हो
तुम्हारे पूर्वनिर्धारित नियम 
कुछ ऐसे अकाट्य हैं
कि
बादल अपने आप 
उमड़ते हैं
घुमड़ते हैं
एवं यथासमय, यथापरिस्थति
बरस जाते हैं

पूरे ब्रह्माण्ड में
ग्रह-उपग्रह 
नियमित रूप से
चलते रहते हैं

मैं भी
तुम्हारे निर्धारित नियमों के अंतर्गत
अपना जीवन निर्वाह करता हूँ
तुम्हारे नियमानुसार 
जन्म लेता हूँ
पर्दा गिराता हूँ

मैं तुम्हारी दी हुई सामग्री से
कभी कुछ निर्माण करता हूँ
तो प्रसन्न हो जाता हूँ
कभी कुछ ढह जाता है
तो दु:खी हो जाता हूँ

यह तो हुई
हम दोनों के लायक होने की बात

न लायक कैसे हुए?

तुम मेरे लायक इसलिए नहीं कि
तुम अपने आप को प्रकट नहीं करते
तुम्हारा अहसास मेरी इन्द्रियों के परे है

(और फिर 
तुम कभी टीवी पर भी नहीं दिखते
कभी तुम्हारा कोई समाचार भी नहीं आता)

और मैं तुम्हारे लायक इसलिए नहीं कि
मुझमें इतनी शक्ति नहीं 
मुझमें इतना सामर्थ्य नहीं 
कि
मैं एकाग्रचित्त होकर
तुम्हारा ध्यान कर सकूँ
तुम्हें पा सकूँ

एक सुझाव है
हो सके तो अमल करना

जड़ को तो है
चेतन को भी
अपना अहसास करा देना
हमेशा नहीं तो
कभी-कभी तो करा ही देना

ताकि
तेरा नाम लेकर जंग न हो

11 जुलाई 2015
चित्तोड़गढ़

Thursday, July 9, 2015

देर है पर अंधेर नहीं


एक काण्टेक्ट
जिसे अब काण्टेक्ट नहीं किया जा सकता
उसे डिलीट करने का
मुझमें हौसला नहीं है
और
उसे
उसने
मिटाने में 
देर नहीं की

कहते हैं
उसके यहाँ 
देर है पर अंधेर नहीं 

देर तो हुई नहीं 
तो क्या अब
उजाला ही उजाला होगा?

कब और कहाँ?

9 जुलाई 2015
दिल्ली | +91-11-2237-3670

Tuesday, July 7, 2015

घरों के दाम बढ़ने लगे हैं


घरों के दाम बढ़ने लगे हैं
पारिवारिक मूल्य गिरने लगे हैं

सच है मगर सच नया नहीं है
धागे रामराज्य के खुलने लगे हैं

जलते-बुझते दीपक हैं हम सब
अंगारों से नाहक दहकने लगे हैं

वो अंदर है, भीतर है, अंतर है मेरा
कहनेवाले मूर्तियाँ पूजने लगे हैं

ख़्वाबों से आँखों का रिश्ता है झूठा
बिन चश्मे ख़्वाब दिखने लगे हैं

7 जुलाई 2015
दिल्ली | +91-11-2238-3670

Monday, July 6, 2015

चुप्पी न साधें



जब डूबता है सूरज
तब भी लगता है सुंदर
क्योंकि 
अंतिम क्षण तक 
वो देता है प्रकाश
अपने प्रत्याशित अवसान से
नहीं होता है हताश

होती है स्फूर्ति
होती है उर्जा 
भले ही कम
लेकिन चमकता है तब भी
दिशाहीन को दिशा
देता है तब भी

नेता, अभिनेता, राजनेता हैं जितने
कलाकार, पत्रकार, शिल्पकार हैं जितने
माता-पिता, भाई-बहन, आत्मजन हैं जितने
सहपाठी, सखा, सहकर्मी, पड़ोसी हैं जितने
सूरज से सीखें
और
अपने प्रत्याशित अवसान के भय से
चुप्पी न साधे

कि
दस साल हो गए हैं
और कुछ लिखा नहीं है
चित्रों में रंग भरे नहीं हैं
संगीत में शब्दों को पिरोया नहीं है
सुरों को कण्ठ से लगाया नहीं है
संगठन को सम्बोधित किया नहीं है
पड़ोसी को आमंत्रित किया नहीं है
सहकर्मी के हालचाल पूछे नहीं है
आत्मजनों को आत्मीय बनाया नहीं है
सखा को गले से लगाया नहीं है

राहुल उपाध्याय | 6 जुलाई 2015 | दिल्ली

Sunday, July 5, 2015

मेरे हमदम, मेरे दोस्त


मेरे हमदम, मेरे दोस्त
तू क्यूँ गया मुझे यूँ छोड़
तेरा मेरा साथ था बंधन
बंधन तू गया क्यूँ तोड़

जब-जब मैंने जो-जो चाहा
तब-तब तूने वो-वो माना
इस बार क्या हुआ
जो गया तू मुख मोड़

तेरा जीवन था मेरा सहारा
तूने मेरा हर काम सँवारा 
तेरी मिसालें मैं हरदम देता
तू था इंसां ऐसा एक बेजोड़

मेरी ज़िंदगी अब भी बाक़ी
तीस नहीं तो पच्चीस बाक़ी 
जैसे-तैसे काटूँगा मैं
जब तक लूँ न मैं चादर ओड़

5 जुलाई 2015
दिल्ली । +91-11-2237-3670