Friday, January 31, 2020

मुझसे ख़फ़ा

मुझसे ख़फ़ा 
मुझ ही से ख़ुश
मान न मान
मैं तेरा महबूब

न तू मुझसे
न मैं तूझसे जुदा
सच तो यही कि
तू मेरा वजूद

करी वफ़ाएँ
करी जफ़ाएँ 
हर हाल है सादिक़ 
तेरा सलूक

न तूझे पता
न मुझे पता
कौन किसके नशे में 
कितना है चूर

ख़्वाबों में तू
ख़यालों में तू
तू पास ही है 
होके भी दूर

राहुल उपाध्याय । 31 जनवरी 2020 । सिएटल

Monday, January 27, 2020

नारियल का तेल पिघलने लगा है

नारियल का तेल पिघलने लगा है
मौसम का प्रकोप बढ़ने लगा है

ग़म होते तो ख़ुशियाँ भी होतीं
चित्त हमारा अब थमने लगा है

सफ़र में है कुछ ऐसी कशिश
मंज़िल से डर लगने लगा है

कहने को अब कुछ भी नहीं
सोते-जागते दिल कहने लगा है

बैठे-बैठे सो जाता है 'राहुल'
और सोते-सोते जगने लगा है

राहुल उपाध्याय । 27 जनवरी 2020 । सिएटल

Saturday, January 18, 2020

मिलोगी तुम

मिलोगी तुम
तो पूछूँगा तुमसे कि
चौरासी पूनम चाँद तका था तुमने?
देर रात तक अपना गाना सुना था तुमने?
गई थी उस पीपल के पास
जो गवाह है हमारी अनकही बातों का?
क्या अब भी तुम चढ़ा लेती हो
गले का हार नाक पर
जब होती हो गहरी सोच में?
क्या अब भी पहनती हो पीला गुरू को?
और छोड़ रखा है नमक मंगल को?

मिलोगी तुम
तो करूँगा बंद - आँखें तुम्हारी
अपनी हथेलियों से - पीछे से आकर

अंगुलियों के वृत्त 
पहचान लोगी?
कर लोगी हथेलियों के 
हल्के 
दबाव की शिनाख्त?

मेरे तो होश ही उड़ जाएँगे 
तुम्हारी ज़ुल्फ़ों के साए में 

मिलोगी तुम

मिलोगी तुम

मिलोगी तुम
तो खोऊँगा नहीं 

राहुल उपाध्याय । 18 जनवरी 2020 । सिएटल

Sunday, January 12, 2020

कोई तो है

कोई तो है
जो टोकता है मुझे
मेरी लाल शर्ट पर
मेरे बिखरे बाल पर
डी-पी न बदलने पर

कोई तो है
जो एक दिन बात न हो
तो दूसरे दिन उलाहना देता है
कि कहाँ थे?
पता है कितना याद किया कल?
हर नोटिफिकेशन पर थी मेरी आँखें बिछी
हर अलर्ट से थी आस जगी
न आया कहीं से कुछ तो थी नाराज़गी बढ़ी

कोई तो है

कोई तो है
जो मुझे
मेरे होने का
अहसास दिलाता है

राहुल उपाध्याय । 12 जनवरी 2020 । सिएटल

Wednesday, January 8, 2020

राष्ट्रपति बन जाना ही होता काफ़ी नहीं

राष्ट्रपति बन जाना ही होता काफ़ी नहीं 
दुबारा न जीते तो आप कुछ भी नहीं 

मिलियन कमाना ही होता काफ़ी नहीं 
वह घट जाए तो आप कुछ भी नहीं 

सुप्रसिद्ध कलाकार होना ही काफ़ी नहीं 
काम न मिलता रहे तो आप कुछ भी नहीं 

किसी से प्यार करना ही होता काफ़ी नहीं 
प्यार न करते रहे तो आप कुछ भी नहीं 

ज़िन्दगी है जुआ जिसमें जीतना काफ़ी नहीं 
जीतते न रहे तो आप कुछ भी नहीं 

राहुल उपाध्याय । 6 जनवरी 2020 । सिएटल

Monday, January 6, 2020

हम हुए फ़ना

हम हुए फ़ना 
तुम हुए ख़ुदा
इश्क़ है ज़ालिम 
पर ऐसा भी क्या

हम जलते रहे
तुम खिलते रहे
ग़ैरों की बातों पे
तुम्हारा ठहाका लगा

कोई ख़्वाहिश नहीं 
कोई आरज़ू नहीं 
हमसफ़र ही नहीं 
तो फिर रखा है क्या 

अपने आप से ही हम
बतिया लेते मगर
न आता है वो और 
हम न जाते वहाँ 

इस क़दर तन्हा हैं
एक अरसे से हम
कि ख़्वाबों का भी आना-जाना
हुआ बन्द है यहाँ 

राहुल उपाध्याय । 6 जनवरी 2020 । सिएटल

Saturday, January 4, 2020

जबसे जाना कि जाना है

जबसे जाना कि जाना है
छोड़ा हर फसाना है

न महबूब, न कोई प्रियतम
न कोई जान-ए-जाना है

तेरी मेरी बिसात है क्या
जग सारा बेगाना है

किस-किस को सर पे बिठाए
ठोकर में सारा ज़माना है

सम्बन्धों की नुमाईश में 
नम्बर न हमें लगाना है

चाहे जो वो कर ही डाले
'राहुल' बड़ा दीवाना है

राहुल उपाध्याय । 4 जनवरी 2020 । सिएटल