हम हुए फ़ना
तुम हुए ख़ुदा
इश्क़ है ज़ालिम
पर ऐसा भी क्या
हम जलते रहे
तुम खिलते रहे
ग़ैरों की बातों पे
तुम्हारा ठहाका लगा
कोई ख़्वाहिश नहीं
कोई आरज़ू नहीं
हमसफ़र ही नहीं
तो फिर रखा है क्या
अपने आप से ही हम
बतिया लेते मगर
न आता है वो और
हम न जाते वहाँ
इस क़दर तन्हा हैं
एक अरसे से हम
कि ख़्वाबों का भी आना-जाना
हुआ बन्द है यहाँ
राहुल उपाध्याय । 6 जनवरी 2020 । सिएटल
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