Monday, January 6, 2020

हम हुए फ़ना

हम हुए फ़ना 
तुम हुए ख़ुदा
इश्क़ है ज़ालिम 
पर ऐसा भी क्या

हम जलते रहे
तुम खिलते रहे
ग़ैरों की बातों पे
तुम्हारा ठहाका लगा

कोई ख़्वाहिश नहीं 
कोई आरज़ू नहीं 
हमसफ़र ही नहीं 
तो फिर रखा है क्या 

अपने आप से ही हम
बतिया लेते मगर
न आता है वो और 
हम न जाते वहाँ 

इस क़दर तन्हा हैं
एक अरसे से हम
कि ख़्वाबों का भी आना-जाना
हुआ बन्द है यहाँ 

राहुल उपाध्याय । 6 जनवरी 2020 । सिएटल

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