मिलोगी तुम
तो पूछूँगा तुमसे कि
चौरासी पूनम चाँद तका था तुमने?
देर रात तक अपना गाना सुना था तुमने?
गई थी उस पीपल के पास
जो गवाह है हमारी अनकही बातों का?
क्या अब भी तुम चढ़ा लेती हो
गले का हार नाक पर
जब होती हो गहरी सोच में?
क्या अब भी पहनती हो पीला गुरू को?
और छोड़ रखा है नमक मंगल को?
मिलोगी तुम
तो करूँगा बंद - आँखें तुम्हारी
अपनी हथेलियों से - पीछे से आकर
अंगुलियों के वृत्त
पहचान लोगी?
कर लोगी हथेलियों के
हल्के
दबाव की शिनाख्त?
मेरे तो होश ही उड़ जाएँगे
तुम्हारी ज़ुल्फ़ों के साए में
मिलोगी तुम
मिलोगी तुम
मिलोगी तुम
तो खोऊँगा नहीं
राहुल उपाध्याय । 18 जनवरी 2020 । सिएटल
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