Tuesday, October 25, 2016

Happy Hallowali


मैं दीवाली की रोशनी लगा रहा था

लोग समझे

मैं हैलोवीन की तैयारी कर रहा हूँ


लाल-हरी

या काली-पीली

रोशनी चाहे जैसी भी हो

रोशनी तो रोशनी है

माहौल उत्सवमय हो जाता है


मैं दीवाली की मिठाई लेकर घर पहुँचा 

तो बच्चे समझे हैलोवीन की ट्रीट्स हैं


लड्डू हो या फ़रेरो-रोशे

बर्फ़ी हो या किट-कैट

मिठाई तो मिठाई है

रिश्ता मधुर-मनोरम हो जाता है


मैं रस्ते चलते लोगों का

अभिवादन करता जाता हूँ

बिना रूके, बिना कहे

मुस्कान बिखेरता जाता हूँ


अमरीकी हो या भारतीय

चीनी हो या पाकिस्तानी

आदमी तो आदमी है

मुस्कराहट देखते ही

इन्सान सहज बन जाता है


हैप्पी दीवाली

हैप्पी हैलोवीन

हैप्पी कुछ भी

क्या फ़र्क़ पड़ता है?


ख़ास बात तो यह

कि सब ख़ुश हो रहे हैं

और सबके ख़ुश रहने की 

दुआ कर रहे हैं


25 अक्टूबर 2016

सिएटल | 425-445-0827

Tinyurl.com/rahulpoems 


फरेरो-रोशे = Ferrero Rocher

किट-कैट = Kit Kat



Sunday, October 23, 2016

तू खोजता ही रहता है


तू खोजता ही रहता है 

रोशनी का सुराग़

कि कहीं तो होगा वो

ज्योतिपुंज विशाल 


और अनदेखा कर देता है

जो दिखता कई बार

झाँक के तेरी खिड़की से

कहता - उठ जाग


और नहीं कुछ तो देख ले

सर उठा के आसमान

क्यूँ निराश भटकता है

इसे ही ले आस मान


चंदा-तारे-पक्षी-ब्रह्माण्ड 

सबकी एक सरकार

हर चार साल में नहीं बदलती

इनकी सरकार


बार-बार की चिंता-फ़िकर 

रूसा-रूसी छोड़ दे

हुक्म रजाई चलना तुझको

उससे नाता जोड़ ले


23 अक्टूबर 2016

सिएटल | 425-445-0827


हर द्वार पे प्रिये तुम दीप जलाना


मोम जलाना, बत्ती जलाना

हर द्वार पे प्रिये तुम दीप जलाना


बटन से जलती-बुझती लड़ियाँ सारी

लगती मनभावन, लगती प्यारी

पर उनमें दीप जलाने का रोमांच कहाँ है?

घी-तेल में बाती डूबोने का अहसास कहाँ?

प्रज्वलित दीपों से भरा वो थाल कहाँ है?

झुक के देहरी पे धरने का भाव कहाँ है?


समय बदला, देश भी बदला

वेशभूषा, परिवेश भी बदला

पर क्या जीवन का उद्देश्य भी बदला?

पुरखों का दिया संदेश भी बदला?


अंधेरा चाहे बढ़ भी जाए

घनघोर-घनेरा हो भी जाए

दीप सदा तुम जलाए रखना

दीप की लौ में ऐसी शक्ति 

भय भगाए, सौहार्द बढ़ाए

आँच में इसके ऐसी गरमी

माँ के हाथ की याद दिलाए 


सूरज उगता-ढलता जाए

चाँद भी घटता-बढ़ता जाए

एक दीप तुम्हारे साथ रहेगा

दीप सदा तुम जलाए रखना


दीप सदा तुम जलाए रखना


मोम जलाना, बत्ती जलाना

हर द्वार पे प्रिये तुम दीप जलाना


23 अक्टूबर 2016

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Sunday, October 16, 2016

चुनाव हमारे हाथ में है



किसी के लिए

यह इमर्जेंसी हो सकती है

कि

पत्ते झड़ रहे हैं

टूट रहे हैं

बिखर रहे हैं


और किसी के लिए

यह भी कि

जो होना था

वही हो रहा है

विधि का विधान है

जो आया है, वो जाएगा

जो खिला है, वो झड़ेगा


और फिर मौसम भी है

कोई बेवक़्त तो नहीं गिर रहा


जब पत्तों का जीवन

इतना सुनियोजित है

पूर्वनिर्धारित है

फिर मेरा क्यूँ नहीं?

हमारा क्यूँ नहीं?


क्यूँ कोई

वक़्त से पहले 

चला जाता है

टूट जाता है

बिखर जाता है


क्या इसलिए कि

पत्ते 

निष्क्रिय रहे?

एक से चिपके रहे?

स्कूल गए,

नौकरी की,

घर बनाया,

कविता लिखी?


नहीं,

बल्कि इसलिए कि

पत्ते निष्काम हैं

हम कर्मलिप्त हैं


कर्म से सुख है

कर्म से दु: है


कर्म से प्रगति है

कर्म से दुर्गति है


चुनाव हमारे हाथ में है


16 अक्टूबर 2016

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Friday, October 14, 2016

बॉय स्काऊट


मैंने आज एक बॉय स्काऊट जैसा काम किया


जिस राह पर मैं रोज़ चलता हूँ

पुष्प और लताओं के बीच 

कुछ सुखमय पल बिताता हूँ

उस राह से

कल रात की आँधी से

टूटी टहनियों को हटाया

किसी धावक को

गिरने से बचाया


हे ईश्वर!

मुझे शक्ति दे

कि मैं 

हर दिन

हर अवस्था में 

हर परिस्थिति में 

बॉय स्काउट का धर्म निभा पाऊँ 


14 अक्टूबर 2016

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Tuesday, October 11, 2016

फ़ॉरवर्ड


साधन बढ़े 

संसाधन बढ़े हैं

फिर भी हम आज

मूक पड़े हैं


ऊँगलियाँ हिलती हैं

लब नहीं हिलते हैं

आस-पड़ोस से भी अब

हम नहीं मिलते हैं


ग्राहम बेल का फोन

मूक पड़ा है

हेनरी फ़ोर्ड की कार

मुँह ताक रही है


इधर की GIF

बस उधर हो रही है

किसी और की शुभकामनाएँ 

किसी और की हो रहीं हैं


हमने रखी

हमने दी हैं

मिनटों में बस 

छुट्टी की है


कट-पेस्ट होता

तो क्या हम करते?

फ़ॉरवर्ड होता

तो हम इतने बैकवर्ड होते

कि ...

साधन बढ़े 

संसाधन बढ़े हैं

फिर भी हम आज

मूक पड़े हैं


11 अक्टूबर 2016

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