Sunday, October 23, 2016

तू खोजता ही रहता है


तू खोजता ही रहता है 

रोशनी का सुराग़

कि कहीं तो होगा वो

ज्योतिपुंज विशाल 


और अनदेखा कर देता है

जो दिखता कई बार

झाँक के तेरी खिड़की से

कहता - उठ जाग


और नहीं कुछ तो देख ले

सर उठा के आसमान

क्यूँ निराश भटकता है

इसे ही ले आस मान


चंदा-तारे-पक्षी-ब्रह्माण्ड 

सबकी एक सरकार

हर चार साल में नहीं बदलती

इनकी सरकार


बार-बार की चिंता-फ़िकर 

रूसा-रूसी छोड़ दे

हुक्म रजाई चलना तुझको

उससे नाता जोड़ ले


23 अक्टूबर 2016

सिएटल | 425-445-0827


इससे जुड़ीं अन्य प्रविष्ठियां भी पढ़ें


1 comments:

Digvijay Agrawal said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 25 अक्टूबर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!