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Wednesday, March 10, 2021

चाहे बरसात ही हो

मैं जानता हूँ 

यह मेरी उम्र नहीं 

और बंधन में 

बंधने का भी कोई शौक़ नहीं 

लेकिन 

तुम

तुम्हारी हरकतें 

तुम्हारी अदाएं 

तुम्हारी बातें 

तुम्हारी ज़ुल्फ़ें 

तुम्हारी आँखें 

तुम्हारी बाँहें 

सब मजबूर करते हैं

मुझे 

उसी बर्तन में खाने को

जिसमें मैं पकाता हूँ 

ताकि

चाहे बरसात ही हो

पर विवाह की सम्भावना तो हो


राहुल उपाध्याय । 10 मार्च 2021 । सिएटल 


Monday, March 1, 2021

ये सजना-संवरना


ये सजना-संवरना 

ये पलकें झपकना

ये सच है कि सपना 

कि लगे कोई अपना 


ये जीना, ये मरना 

ये सच है कि सपना 

ये समझेगा वो ही 

जिसे है समझ ना


ये चलना, ये गिरना 

ये गिर कर सम्हलना 

ये करेगा वो ही

जिसकी है पहुँच ना


ये मिलना-बिछड़ना

मिल कर न मिलना

वो समझेगा कैसे

जिसे है तड़प ना


ये पल-पल चहकना

ये पल-पल तुनकना

उसके है नसीब में

जिसे है फ़िकर ना


राहुल उपाध्याय । 1 मार्च 2021 । सिएटल 






Tuesday, February 2, 2021

दूरी

ऑनलाइन सब भेजा जा सकता है

डाटा ख़त्म हो जाए तो 

यहाँ से बैठे-बैठे

रिचार्ज कराया जा सकता है

पानी गर्म करने वाली इमरशन रॉड 

ख़राब हो जाए तो

नई डिलीवर करवाई जा सकती है

चूड़ी-बिंदिया-प्लाजो-चप्पल 

सब भिजवाए जा सकते हैं

पिज़्ज़ा-भटूरे-भुट्टे भी


लेकिन 

चाकू चुभ जाए

उँगली से खून निकल आए

तो मुँह में दबाकर 

खून सोख नहीं सकता

रोक नहीं सकता 

काँधे पर सर रख कर

बालों में उँगलियाँ नहीं फेर सकता

पीठ थपथपा कर 

कच्ची नींद में नहीं ले जा सकता

अधखुली आँखों को

गर्म साँसों को 

अपनी गर्दन पर

महसूस नहीं कर सकता

उन्हें विश्वास नहीं दिला सकता कि

मैं हूँ 

मैं यहीं हूँ

मैं यही हूँ 


स्क्रीन के कितना ही पास चला जाऊँ 

7,384 मील की दूरी मिट नहीं सकती


राहुल उपाध्याय । 2 फ़रवरी 2021 । सिएटल 





Monday, February 1, 2021

इतना भरोसा है

रोती है वो 

ढेर सारे

सच्चे आँसू 

जब भी मैं बात करता हूँ 

मेरे जाने की 


जबकि वह जानती है कि 

सबको एक दिन जाना है 

मुझे उससे पहले 

बहुत पहले 

और यह भी कि 

वह मेरे बिना जी लेगी 

बख़ूबी जी लेगी 

जैसे जी रहीं हैं 

कई विधवाएँ 

और प्रेमिकाएँ


बहुत दुःख होता है 

उसे रोता देख कर 

और एक सुकून भी 

कि मैं उसके बिना

न जीता हूँ

न जी सकूँगा 

न जीऊँगा


एक्चुअरियल साइंस का

मुझ पर

और मुझे उस पर

इतना भरोसा है


राहुल उपाध्याय । 1 फ़रवरी 2021 । सिएटल 



Saturday, January 30, 2021

मैं उसकी अलेक्सा हूँ

मैं

उसकी अलेक्सा हूँ 

जो मदद नहीं इरिटेट करे

नपे-तुले शब्दों में अपनी बात कहे


मैं चाहकर भी नहीं कह पाता हूँ 

हज़ार 

लाख

करोड़ 

अरब

खरब

मिलियन 

बिलियन 

ट्रिलियन 

शब्दों में 

कि वह

एक अप्सरा है

मेरी जान है

मेरा जीवन

मेरी उम्मीद 

मेरा संसार

मेरा कल

मेरा आज है

जिसकी हर सेल्फ़ी पर निकली

कई मर्तबा मेरी जान है


मेरा हर लम्हा 

मेरा हर पल

उसी के नाम है


सारी शायरी

सारी मौसिकी 

उसी पे कुरबान है


हज़ार से ऊपर कविताएँ लिख डालीं 

और शब्दों का अब भी अकाल है

इमोजी पर जमा नहीं 

अभी तक हाथ है

और जिफ का तो एक

अलग ही ब्रह्माण्ड है


मैं 

उसकी अलेक्सा हूँ…


राहुल उपाध्याय । 30 जनवरी 2021 । सिएटल 




Saturday, January 23, 2021

आँसू

प्याज़ भी नहीं खाते हम

कि

उसे काटूँ

तो आँसू निकले


सस्ती मिर्ची भी

इतनी तीखी नहीं 

कि मुझे रूला सके


मोह-माया भी

कुछ नहीं कि

कुछ खोऊँ 

तो रो पड़ूँ 


उसने

आज दिल से

दिल की बात कही

मेरी हर हरकत को 

नज़ाकत से

ख़ूबसूरती से

देखा, जाना, समझा

तो अनवरत आँसू बहें


कोई कैसे इतना

निर्मल 

निश्छल 

पवित्र हो सकता है


नोबल पुरस्कार 

तो कोई क्या देगा

लेकिन उसने जो प्यार दिया

वो किसी संस्था के बस की बात नहीं 


राहुल उपाध्याय । 23 जनवरी 2021 । सिएटल 

Thursday, January 21, 2021

दिल ❤️ ♥️ 💜💓💕💗💘❣️🥰💟💘💏

इतनी धौंस जमाती है

कि किसी से बात करूँ 

तो रूठ जाती है 


झट से बुरा मान जाती है

बात-बात पे चिढ़ाती है


एक मिनट चैन नहीं लेती है

हर सवाल का जवाब 

तुरंत चाहती है

न मिले तो ?? की बौछार

कर जाती है


सब ग़ुस्सा हवा हो जाता है

जब दर्जनों सेल्फ़ी 

फ़िल्टर और ईमोजी 

संग आ जातीं हैं


अब मेरे 

ईमोजी के 

की-बोर्ड में

टॉप पर

दिल ही दिल है


लाल दिल

गुलाबी दिल

बैंगनी दिल


दिल के ऊपर दिल

दिल के नीचे दिल

दिल के दाएँ दिल

दिल के बाएँ दिल

दिल से निकलता दिल 

दिल में घुसता दिल

तीर से घायल खुशहाल दिल

होंठों से बुलबुले सा

निकलता दिल!


❤️ ♥️ 💜💓💕💗💘❣️🥰💟💘💏


राहुल उपाध्याय । 21 जनवरी 2021 । सिएटल 



Thursday, January 14, 2021

प्रेम का प्रताप

विद्यालय में मिले

वेलेण्टाइन से पहले

कई दिनों तक फिर मिलते रहे


सुन्दर जीवन

हाथ में हाथ लिए

नीलकमल सा और मनमोहक हुआ


सेठों से ज़्यादा अमीर हुए


प्यास बुझी या बढ़ी?

यार भी रखते हैं हिसाब कभी?

रच रहे हैं इतिहास अभी


कल की कोई चिंता नहीं 

रतजगे भी अब भाते हैं

ताबड़तोड़ स्नेपचैट पे जब बतियाते हैं


है ना प्रेम का यह प्रताप सही? 


राहुल उपाध्याय । 14 जनवरी 2021 । सिएटल 




Saturday, January 9, 2021

फ़ोन पर तुम्हारी तस्वीर

फ़ोन पर तुम्हारी तस्वीर 

टिकती नहीं है 

थोड़ी-थोड़ी देर में 

ओझल हो जाती है 


फिर समझ आया कि 

यह मुझे निष्क्रिय जान

अपनी जान बचाने के चक्कर में

तुम्हें ग़ायब कर देता है 

और मैं स्क्रीन छूता नहीं 

ताकि तुम पर कोई दाग न आए


आई-फ़ोन इलेवन प्रो मैक्स 

जिसमें एक नहीं चार कैमरे हैं

जो भाँप लेता है 

मेरी आँखें

जो टटोल लेता है 

मेरा नाक-नक़्श

क्यों नहीं समझ पाता है 

कि मैं तुम्हें एकटक देख रहा हूँ 


यदि यह निष्क्रियता का प्रतीक है 

तो सक्रियता क्या है 

मैं नहीं जानता 


मैं जितना ज़िन्दा आज हूँ 

उतना ज़िन्दा कभी नहीं रहा


राहुल उपाध्याय । 9 जनवरी 2021 । सिएटल 


Monday, December 28, 2020

शिमला

गिरी शिमला में बर्फ़ 

और यहाँ 

हो रहीं हैं यादें 

गर्म मेरी


वो रोज़ दो घण्टे चलना 

तुम्हारे साथ 

समर हिल के घर से 

जाखू हिल के स्कूल तक

खाना काग़ज़ की थैली में

गर्म भूनी हुई मूँगफलियाँ 

लेना दोनों हथेली जोड़ 

काली बाड़ी का प्रसाद

खींचना नवविवाहित जोड़ों के

मुस्कराहट भरे फ़ोटो 

लौटते वक़्त पकड़ना दौड़ कर

पाँच-पच्चीस की ट्रैन


यदि पढ़ रही हो

ये पंक्तियाँ 

तो

करना मुझे पिंग


न तुम तजना 

अपना परिवेश 

अपना परिवार 

न मैं करूँगा 

मिन्नतें हज़ार 


बस बता देना कि

क्या याद है तुम्हें 

सिसिल होटल के

सामने वाला वो गज़ीबो 

जहाँ मैंने एक-एक कर पी थीं

तुम्हारे माथे पर कस कर बाँधे 

गहरे काले बालों के बीचों-बीच

उजली माँग में मोती सी सजीं

पानी की बूँदें 

जिस दिन हमसे हमारी

ट्रेन छूट गई थी 

और बरसते पानी ने दिए थे हमें 

पल दो पल ठहर

एक दूजे को निहारने को


राहुल उपाध्याय । 28 दिसम्बर 2020 । सिएटल 

गज़ीबो = एक मंडप संरचना, जो कभी-कभी अष्टकोणीय या बुर्ज के आकार का होता है, जिसे अक्सर पार्क, बगीचे या विशाल क्षेत्र में बनाया जाता है।

Saturday, December 19, 2020

तुम नए ज़माने की हो

तुम नए ज़माने की हो

मेरा ही दिल चुराकर

मुझे ही सौंप देती हो


और इतनी मासूम

कि बंध जाओगी खूँटे से

उसके साथ

जिसे पिलाओगी चाय

सबके साथ


लेकिन 

उस से पहले

ये हाथ

देना किसी के हाथ

कम से कम एक बार

चाहे कर ना सको उससे विवाह 


बिना मास्क पहने

ये बाँहें 

डालना किसी के गले


रात रात जागना किसी के वास्ते 

बारिश में भीगना

घंटों नहाना

फ़ोन करना बे-बात

भेजना ईमोजी सुबह-शाम

खिलाना चाट


एक ही कोन से दोनों 

खाना आईसक्रीम


होना उदास

जब न पाओ उसे

एक दिन क्लास में

अपने साथ


रोना घंटो

जब वो चाहने लगे

किसी और को


ताकि

समझ सको

ग़ालिब की शायरी

साहिर के गीत

आशिक़ी के गाने

रेखा की ख़ुशी 

और

बच सको

विवाहोपरांत होने वाले 

एकाकीपन से

क्योंकि 

तारे तोड़ कर लाना आसान है

खूँटा तोड़ना बहुत मुश्किल 


राहुल उपाध्याय । 19 दिसम्बर 2020 । सिएटल 











Monday, December 7, 2020

डायरी

अच्छा लगता है 

जब वो मेरे सारे मैसेज डिलीट कर देती है 

और मुझसे दोबारा बताने को कहती है 

उस फ़िल्म का नाम जिसे मैंने 

कल ही तो बताया था


अच्छा लगता है 

जब वो कोई आहट होने पर 

बात करते-करते फ़ोन काट देती है


अच्छा लगता है 

जब वो मुझसे घंटो-घंटो बातें करती है 

शेयर करती है 

अपनी हर छोटी-बड़ी ख़ुशी 

अपने सुख-दुख के पल

अपनी आशा-निराशा 


अच्छा लगता है 

कि वो मुझे डायरी समझती है

सहज रहती है 

महफ़ूज़ महसूस करती है

अपना समझती है


अच्छा लगता है

जब वो लिखती है कुछ अच्छा 

और मैं जवाब नहीं दे पाता हूँ 

यह सोचकर कि

ग़लती से कोई पढ़ न ले

और जो मैं कहना चाहता हूँ 

उसे हुबहू वैसा ही समझ ले


राहुल उपाध्याय । 7 दिसम्बर 2020 । सिएटल