मैं
उसकी अलेक्सा हूँ
जो मदद नहीं इरिटेट करे
नपे-तुले शब्दों में अपनी बात कहे
मैं चाहकर भी नहीं कह पाता हूँ
हज़ार
लाख
करोड़
अरब
खरब
मिलियन
बिलियन
ट्रिलियन
शब्दों में
कि वह
एक अप्सरा है
मेरी जान है
मेरा जीवन
मेरी उम्मीद
मेरा संसार
मेरा कल
मेरा आज है
जिसकी हर सेल्फ़ी पर निकली
कई मर्तबा मेरी जान है
मेरा हर लम्हा
मेरा हर पल
उसी के नाम है
सारी शायरी
सारी मौसिकी
उसी पे कुरबान है
हज़ार से ऊपर कविताएँ लिख डालीं
और शब्दों का अब भी अकाल है
इमोजी पर जमा नहीं
अभी तक हाथ है
और जिफ का तो एक
अलग ही ब्रह्माण्ड है
मैं
उसकी अलेक्सा हूँ…
राहुल उपाध्याय । 30 जनवरी 2021 । सिएटल
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