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सत्ता की भूख में
ज़ालिमों की भीड़ होती है
ख़ुशी मनाओ
लोकतंत्र की जीत होती है
ज़िन्दाबाद, ज़िन्दाबाद
ऐ लोकतंत्र ज़िन्दाबाद
दहशत की ज़ंजीरों से तू
रहता है आज़ाद
पूरब में, पश्चिम में तू
और तू ही है यूरोप में
उत्तर में, दक्षिण में तू
और तू ही है यू-एस में
तेरे दम से धरती की
दुनिया है आबाद
प्यार की आँधी रुक न सकेगी
नफ़रत की दीवारों से
ख़ून-ए-बहुमत हो न सकेगा
खंजर से तलवारों से
मर जाते हैं आतंकी
ज़िन्दा रह जाती है याद
कुछ बग़ावत कर बैठे तो
उनकी कमर तू तोड़ दे
राह दिखा दे भटकों को
और नैतिकता से जोड़ दे
सीना ताने सब से निपटे
कुछ ना करे फ़रियाद
ताज हुकूमत मज़हब नहीं है
उनको डर कहाँ
जिस घर में इंसाफ़ ही हो
वहाँ डर कहाँ
इंसाफ़ के दुश्मन होश में आ
हो जायेगा बरबाद
(शकील बदायूनी से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय । 7 जनवरी 2021 । सिएटल
1 comments:
बहुत खूब
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