हुआ वस्ल और हम न फ़ना हुए
ज़िंदगी में कैसे-कैसे इम्तहां हुए
या कहूँ पुनर्जन्म इसे
जो हम जुदा हुए
होते एक तो निपट लेते हज़ारों से
हैं दो तो ग़म भी दुगने अता हुए
ज़माने के खूँ से वाक़िफ़ हूँ मैं
अपने ही नहीं जो बेवफ़ा हुए
ग़म और मसर्रत पहलू जीवन के
अल्फ़ाज़ 'राहुल' ऐसे दफ़ा हुए
राहुल उपाध्याय । 14 जनवरी 2021 । सिएटल
वस्ल = मिलन
फ़ना = ख़त्म, विलीन
ख़ूँ = ख़ून
मसर्रत = ख़ुशी
अल्फ़ाज़ = लफ़्ज़ (शब्द) का बहुवचन
1 comments:
बहुत ख़ूब!
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