विद्यालय में मिले
वेलेण्टाइन से पहले
कई दिनों तक फिर मिलते रहे
सुन्दर जीवन
हाथ में हाथ लिए
नीलकमल सा और मनमोहक हुआ
सेठों से ज़्यादा अमीर हुए
प्यास बुझी या बढ़ी?
यार भी रखते हैं हिसाब कभी?
रच रहे हैं इतिहास अभी
कल की कोई चिंता नहीं
रतजगे भी अब भाते हैं
ताबड़तोड़ स्नेपचैट पे जब बतियाते हैं
है ना प्रेम का यह प्रताप सही?
राहुल उपाध्याय । 14 जनवरी 2021 । सिएटल
2 comments:
सुन्दर
राहुल भाई, बहुत शानदार आपको सदाशयी शुभकामनाये
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