प्यार की रंगत में है
सबका हाथ
जो रोके उनका भी
और जो देते हैं साथ
प्यार के दुश्मन न हो चारों तरफ़
तो क्या छुप के मिलना
और क्या ही करना
इशारों में बात
ये सजना-संवरना
ये मिलना-बिछड़ना
इन सब में हैं शामिल
हज़ारों के हाथ
न होता स्कूल
न होता दफ़्तर
तो न तकते बेसब्री से
घड़ी के हाथ
तेरे मेरे मिलने के
मक़ाम कई हैं
जहाँ हो मना वहाँ की
अलग ही है बात
मिल के न मिलना
महफ़िल में तुम से
और शायरी में कहना
सारी बात
राहुल उपाध्याय । 28 जनवरी 2021 । सिएटल
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