Thursday, December 31, 2020

शुभकामनाएँ

मैं

साल की कृत्रिम सीमाओं को नहीं मानता हूँ

और न ही इस पचड़े में पड़ना चाहता हूँ

कि साल में 365 दिन होते हैं या 365 और एक चौथाई

और न हीं इस द्वंद्व में फ़ंसना चाहता हूँ

कि साल एक जनवरी को बदलता है या चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को


मैं तो बस इतना चाहता हूँ

कि आपके जीवन का हर पल

सुहाना हो

होंठों पे गीत हो

जो किसी को सुनाना हो

आपमें इतनी शक्ति हो

कि

झूठ बोलना न पड़े

सच कड़वा न लगे

और जब जितना मिले

उसमें घर चलाना

बुरा न लगे


राहुल उपाध्याय । 1 जनवरी 2013 । सिएटल 

Wednesday, December 30, 2020

बड़े बदनसीब हैं वो

बड़े बदनसीब हैं वो

जो ता-उम्र 

एक ही घर

एक ही शहर 

एक ही परिवार में रहे


सारी ज़िंदगी 

सिर्फ़ दाल-रोटी खाई

पेंट-शर्ट पहना

वही गाने सुने

वही किताबें पढ़ीं 

एक ही भाषा सीखी 


एक ही से प्यार किया


राहुल उपाध्याय । 30 दिसम्बर 2020 । सिएटल 



Tuesday, December 29, 2020

इक साल आए, इक साल जाए

पूरा गीत यहाँ सुनें:

https://youtu.be/fSUd0MdrbEM 


इक साल आए, इक साल जाए

रोग बदले ना बदले नसीब


तक-तक सूने मन्दिर 

रातें बीत गईं

मोहन भी न मोहे मोहे 

कैसी प्रीत भई

तरस दरस नैन बरसे जाए


घर पे पढ़ते बच्चे 

कमाई कौन करे

बीमार पड़े कल तो 

दवाई कौन करे

माँ की ममता नीर बहाए


टीका सब कुछ 

टीके पे सारा छोड़ दिया

है दुख क्या, सुख क्या, 

सोचना छोड़ दिया

हमको जीना कौन सिखाए


(आनन्द बक्षी से क्षमायाचना सहित)

राहुल उपाध्याय । 29 दिसम्बर 2020 । सिएटल 



Monday, December 28, 2020

शिमला

गिरी शिमला में बर्फ़ 

और यहाँ 

हो रहीं हैं यादें 

गर्म मेरी


वो रोज़ दो घण्टे चलना 

तुम्हारे साथ 

समर हिल के घर से 

जाखू हिल के स्कूल तक

खाना काग़ज़ की थैली में

गर्म भूनी हुई मूँगफलियाँ 

लेना दोनों हथेली जोड़ 

काली बाड़ी का प्रसाद

खींचना नवविवाहित जोड़ों के

मुस्कराहट भरे फ़ोटो 

लौटते वक़्त पकड़ना दौड़ कर

पाँच-पच्चीस की ट्रैन


यदि पढ़ रही हो

ये पंक्तियाँ 

तो

करना मुझे पिंग


न तुम तजना 

अपना परिवेश 

अपना परिवार 

न मैं करूँगा 

मिन्नतें हज़ार 


बस बता देना कि

क्या याद है तुम्हें 

सिसिल होटल के

सामने वाला वो गज़ीबो 

जहाँ मैंने एक-एक कर पी थीं

तुम्हारे माथे पर कस कर बाँधे 

गहरे काले बालों के बीचों-बीच

उजली माँग में मोती सी सजीं

पानी की बूँदें 

जिस दिन हमसे हमारी

ट्रेन छूट गई थी 

और बरसते पानी ने दिए थे हमें 

पल दो पल ठहर

एक दूजे को निहारने को


राहुल उपाध्याय । 28 दिसम्बर 2020 । सिएटल 

गज़ीबो = एक मंडप संरचना, जो कभी-कभी अष्टकोणीय या बुर्ज के आकार का होता है, जिसे अक्सर पार्क, बगीचे या विशाल क्षेत्र में बनाया जाता है।

Sunday, December 27, 2020

इतवारी पहेली: 20201227


इतवारी पहेली:


बनने चली थी संगीतप्रेमी ## ###

और बन बैठी हिन्दी-अंग्रेज़ी #####


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya 


आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 


सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 3 जनवरी को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 27 दिसम्बर 2020 । सिएटल


हल: अनु वादक / अनुवादक















Saturday, December 26, 2020

अलविदा 2020

पूरा गीत यहाँ सुनें:

https://youtu.be/Z9twdHDZbVg 


उन्नीस की ग़लती को 

थोप के इंसान ने दुनिया में

तुझको किया बदनाम 

इस झूठ की दुनिया को 

छोड़ के जाता जा प्यारे

भूल के सब इलज़ाम 


जब जानवर कोई, इंसान को मारे

कहते हैं दुनिया में, वहशी उसे सारे

इक जानवर को खा के 

आज इंसानों ने किए

जीवन अपने हराम

तुझको किया बदनाम 


बस आखिरी सुन ले, ये मेल है अपना

बस ख़त्म ऐ साथी, ये खेल है अपना

अब साथ में लेता जा

इस अदने शायर का

प्यार भरा सलाम


(आनन्द बक्षी से क्षमायाचना सहित)

राहुल उपाध्याय । 26 दिसम्बर 2020 । सिएटल 

Friday, December 25, 2020

ख़्वाब कहीं और करवट कहीं बदलते हैं

पहले भजन गाए जाते थे 

अब भजन बजते हैं 

वक़्त बदला 

हम भी बदले हैं 


पहले सारी दुनिया

सर पे उठा लेते थे 

अब भूख लगने पर 

फ़ोन उठा लेते हैं


समंदर से जो गहरा है 

वो मेरे अंदर है 

यक़ीन न हो तो 

चख लो जो बहते हैं


ज़माने से मैं कब 

मुख़ातिब था 

मुझे सुनने वाले 

मुझसे पूछते हैं


अहसास एहसान का होता 

तो ये दिन न होते 

ख़्वाब कहीं 

और करवट कहीं 

बदलते हैं


(मुख़ातिब = सम्बोधित करना)

राहुल उपाध्याय । 25 दिसम्बर 2020 । सिएटल 


Thursday, December 24, 2020

चलो याद तो आईं तुम्हें

चलो याद तो आईं तुम्हें 

गीता जयंती 

तुलसी 

और अपनी संस्कृति 


वरना 

गुज़ार देते दिन 

यूँही 

दाल-रोटी के चक्कर में


कई बार हम 

दूसरों को देखकर

सीखते हैं 

और

कई बार 

नक़ल कर बैठते हैं

पर 

स्वीकारने से 

हिचकते हैं


एक बात तो बताओ

अगले साल 

कौन सी जयंती मनाओगे?


राहुल उपाध्याय । 24 दिसम्बर 2020 । सिएटल 




Wednesday, December 23, 2020

कैसे कहें हम रोग ने हमको


कैसे कहें हम रोग ने हमको

क्या-क्या खेल दिखाएँ 

यूँ शरमाई किस्मत हमसे

खुद से हम शरमाए 


बागों को तो पतझड़ लूटे

लूटा हमें बहार ने 

मृतक मरे रोग से लेकिन

मारा हमें अलगाव ने 

अपना वो हाल हैं बीच सफ़र में 

जैसे कोई भाग जाए


तुम तो जानो क्या चाहा था

क्या खोकर बैठे हम 

रिश्ते-नाते, बंधु-बांधव 

सब सपने, सब दमख़म 

इतना सब है खोया हमने 

कहे तो कहा ना जाए 


ऐसे लगी बंदिशें हम पे

कहीं भी जा ना सके हम 

अपनों से हम मिल ना पाए

रोए तो रो ना सके हम 

कब होगा ये रोग अलविदा 

हमें कुछ समझ न आए


(नीरज से क्षमायाचना सहित)

राहुल उपाध्याय । 16 दिसम्बर 2020 । सिएटल 

वीडियो यहाँ देखें/सुनें:

https://youtu.be/uNHhxMDuYbI

Monday, December 21, 2020

ये क्या जगह है दोस्तो

ये क्या जगह है दोस्तो

ये कौन सा दयार है

कि कैमरे के सामने 

हो रहा उपचार है


ये किस मकाम पर हयात

मुझको लेके आ गई

न मर्ज़ी ख़ुद की है जहाँ

न कोई अधिकार है


तमाम उम्र तो हिसाब 

माँगता है लखपति

बन गया वो दानवीर 

जो मेरा गुनहगार है


बुला रहे हैं सब मुझे 

चिलमनों के उस तरफ़

बहला-फुसला के हो रहा 

मुझपे अत्याचार है


न जिसकी शकल है कोई

न जिसका नाम है कोई

आज उसे मिटाने की 

इनपे धुन सवार है


(शहरयार से क्षमायाचना सहित)

राहुल उपाध्याय । 21 दिसम्बर 2020 । सिएटल 

Sunday, December 20, 2020

जप ले राम नाम तू

राम नाम ले सदा

जप ले राम नाम तू

वो ही तेरा आसरा

जप ले राम नाम तू


खो गया भटक-भटक

हो रहा निराश तू

किस लिए उदास है

किस लिए हताश तू

तेरा मालिक तेरे साथ

जप ले राम नाम तू


है बुझा-बुझा सा दिल

बोझ साँस-साँस पर 

जी रहा है मर-मर

रो के कल की बात पर

तेरे ग़म की क्या बिसात 

जप ले राम नाम तू


कौन जाएगा बिछड़ 

कौन रहेगा साथ में 

इसकी है किसे ख़बर 

ये तो एक राज़ है

अपने मन को साध ले

जप ले राम नाम तू


(शैलेंद्र से क्षमायाचना सहित)

राहुल उपाध्याय । 20 दिसम्बर 2020 । सिएटल 

वीडियो यहाँ देखें/सुनें: 

https://youtu.be/m32QqR5cRgY

Saturday, December 19, 2020

इतवारी पहेली: 2020/12/20


इतवारी पहेली:


रोटी से नहीं, पेट भर रहा हूँ #%## #

और भारत में ख़ुश हो रहें हैं ## ## #


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya 


आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 


सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 27 दिसम्बर को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 20 दिसम्बर 2020 । सिएटल


हल: सब्जियों से / सब जियो से















तुम नए ज़माने की हो

तुम नए ज़माने की हो

मेरा ही दिल चुराकर

मुझे ही सौंप देती हो


और इतनी मासूम

कि बंध जाओगी खूँटे से

उसके साथ

जिसे पिलाओगी चाय

सबके साथ


लेकिन 

उस से पहले

ये हाथ

देना किसी के हाथ

कम से कम एक बार

चाहे कर ना सको उससे विवाह 


बिना मास्क पहने

ये बाँहें 

डालना किसी के गले


रात रात जागना किसी के वास्ते 

बारिश में भीगना

घंटों नहाना

फ़ोन करना बे-बात

भेजना ईमोजी सुबह-शाम

खिलाना चाट


एक ही कोन से दोनों 

खाना आईसक्रीम


होना उदास

जब न पाओ उसे

एक दिन क्लास में

अपने साथ


रोना घंटो

जब वो चाहने लगे

किसी और को


ताकि

समझ सको

ग़ालिब की शायरी

साहिर के गीत

आशिक़ी के गाने

रेखा की ख़ुशी 

और

बच सको

विवाहोपरांत होने वाले 

एकाकीपन से

क्योंकि 

तारे तोड़ कर लाना आसान है

खूँटा तोड़ना बहुत मुश्किल 


राहुल उपाध्याय । 19 दिसम्बर 2020 । सिएटल 











वैक्सीन आई है

वैक्सीन आई है, आई है, वैक्सीन आई है

बड़े दिनों के बाद, एक ग़रीब की याद

जगत को अब क्यों आई है


पहले मेरा हाथ लिया है...

उस पे निशाना दाग दिया है


ओ धन-दौलत पे मरने वाले

इतनी दया क्यूँ मेरे खाते


नौकरी देने की जब थी बारी

भूल गया क्यूँ तू ज़िम्मेदारी


सारे रिश्ते तूने तोड़े

आँख में आँसू तूने छोड़े


कम खाते हैं कम सोते हैं

बहुत ज़्यादा हम रोते हैं 


सूनी हो गईं शहर की गलियाँ

कांटे बन गईं बाग की कलियाँ


बंद हुए सावन के झूले

उजड़े आंगन, बुझ गए चूल्हे


अब के बरस जब आई दीवाली

दीप नहीं दिल जले हैं खाली


रंग बिना जब आई होली

रोली लगा के बेटी रो ली


पीपल सूना, पनघट सूना

घर शमशान का बना नमूना


ना फ़सल कटी आई बैसाखी

अब तो क्या रह गया है बाकी


पहले जब भी फूल खिलते थे

मिल-जुल के हम सब खिलते थे


बंद हुआ ये मेल भी अब तो

खतम हुआ ये खेल भी अब तो


डोली में जब बैठी बहना

रस्ता देख रहे थे नैना


मैं तो भाई हूँ मेरा क्या है

इसकी माँ का हाल बुरा है


बजनी थी वहाँ जब शहनाई

छाई थी वहाँ भीषण तन्हाई


तूने पैसा बहुत कमाया

पैसे ने फिर लोभ बढ़ाया


हम पंछी पिंजरे में बैठे

जैसे चाहे तू पैसे ऐंठे


माना उमर बहुत है छोटी

इसकी भी तो क़ीमत होगी


(आनन्द बक्षी से क्षमायाचना सहित)

राहुल उपाध्याय । 16 दिसम्बर 2020 । सिएटल 

वीडियो यहाँ देखें/सुनें: https://youtu.be/k6s23D6iUEc