मैं
साल की कृत्रिम सीमाओं को नहीं मानता हूँ
और न ही इस पचड़े में पड़ना चाहता हूँ
कि साल में 365 दिन होते हैं या 365 और एक चौथाई
और न हीं इस द्वंद्व में फ़ंसना चाहता हूँ
कि साल एक जनवरी को बदलता है या चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को
मैं तो बस इतना चाहता हूँ
कि आपके जीवन का हर पल
सुहाना हो
होंठों पे गीत हो
जो किसी को सुनाना हो
आपमें इतनी शक्ति हो
कि
झूठ बोलना न पड़े
सच कड़वा न लगे
और जब जितना मिले
उसमें घर चलाना
बुरा न लगे
राहुल उपाध्याय । 1 जनवरी 2013 । सिएटल
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