आज पुरानी बातों से
कोई मुझे बकवास न दे
नर्क की झूठी दलील न दे
स्वर्ग का सुनहरा ख़्वाब न दे
बीते दिनों की याद थी जिनमें
मैं वो तराने भूल चुका
आज नई मंज़िल है मेरी
कल के ठिकाने भूल चुका
न वो दिल न सनम
न वो दीन-धरम
अब दूर हूँ सारे गुनाहों से
टूट चुके सब नाम के बंधन
आज कोई ज़ंजीर नहीं
शीशा-ए-दिल में पाखंडों की
आज कोई तस्वीर नहीं
अब शाद हूँ मैं
आज़ाद हूँ मैं
कुछ काम नहीं सलाख़ों से
जीवन बदला दुनिया बदली
मन को अनोखा ज्ञान मिला
आज मुझे अपने ही दिल में
एक नया इन्सान मिला
पहुँचा हूँ वहाँ
नहीं दूर जहाँ
अंजाम भी मेरी निगाहों से
(शकील बदायूनी से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय । 5 दिसम्बर 2020 । सिएटल
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