कुछ की जेबें भरेंगी
बाक़ी सब आह भरेंगे
वैक्सीन की बात चली तो
शक-शुबहा साथ चलेंगे
कहीं इसकी है वैक्सीन
कहीं उसकी है वैक्सीन
कहाँ तो एक नहीं थी
अब हज़ारों हैं वैक्सीन
कौन सी अच्छी-बुरी है
कैसे हम जाँच लेंगे
जैसे अब तक बचे हैं
वैसे बचते रहेंगे
हाथ धोते रहे हैं
हाथ धोते रहेंगे
वैक्सीन की क्या ज़रूरत
अक़्ल से काम लेंगे
हर तरफ़ बाज़ार नरम है
इलाज का बाज़ार गरम है
इनका है क्या भरोसा
इनका न ईमान-धरम है
मरीज़ मरता है तो मर जाए
ये तो नोट छाप लेंगे
(आनन्द बक्षी से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय । 3 दिसम्बर 2020 । सिएटल
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