पूरा गीत यहाँ सुनें:
इक साल आए, इक साल जाए
रोग बदले ना बदले नसीब
तक-तक सूने मन्दिर
रातें बीत गईं
मोहन भी न मोहे मोहे
कैसी प्रीत भई
तरस दरस नैन बरसे जाए
घर पे पढ़ते बच्चे
कमाई कौन करे
बीमार पड़े कल तो
दवाई कौन करे
माँ की ममता नीर बहाए
टीका सब कुछ
टीके पे सारा छोड़ दिया
है दुख क्या, सुख क्या,
सोचना छोड़ दिया
हमको जीना कौन सिखाए
(आनन्द बक्षी से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय । 29 दिसम्बर 2020 । सिएटल
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वाह
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