Friday, December 25, 2020

ख़्वाब कहीं और करवट कहीं बदलते हैं

पहले भजन गाए जाते थे 

अब भजन बजते हैं 

वक़्त बदला 

हम भी बदले हैं 


पहले सारी दुनिया

सर पे उठा लेते थे 

अब भूख लगने पर 

फ़ोन उठा लेते हैं


समंदर से जो गहरा है 

वो मेरे अंदर है 

यक़ीन न हो तो 

चख लो जो बहते हैं


ज़माने से मैं कब 

मुख़ातिब था 

मुझे सुनने वाले 

मुझसे पूछते हैं


अहसास एहसान का होता 

तो ये दिन न होते 

ख़्वाब कहीं 

और करवट कहीं 

बदलते हैं


(मुख़ातिब = सम्बोधित करना)

राहुल उपाध्याय । 25 दिसम्बर 2020 । सिएटल 


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