रोती है वो
ढेर सारे
सच्चे आँसू
जब भी मैं बात करता हूँ
मेरे जाने की
जबकि वह जानती है कि
सबको एक दिन जाना है
मुझे उससे पहले
बहुत पहले
और यह भी कि
वह मेरे बिना जी लेगी
बख़ूबी जी लेगी
जैसे जी रहीं हैं
कई विधवाएँ
और प्रेमिकाएँ
बहुत दुःख होता है
उसे रोता देख कर
और एक सुकून भी
कि मैं उसके बिना
न जीता हूँ
न जी सकूँगा
न जीऊँगा
एक्चुअरियल साइंस का
मुझ पर
और मुझे उस पर
इतना भरोसा है
राहुल उपाध्याय । 1 फ़रवरी 2021 । सिएटल
1 comments:
शानदार... बढ़िया कविता
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