ग़म लाख आए
दिन-रात आए
मन को मेरे पर
डरा न पाए
अब तो मेरा मन
रोज़ ही गाता है
आशा ही आशा के
गीत वो गाता है
न जाने कैसा एहसास है
साँस ही है जो बस ख़ास है
क्या नशा इस बात का
मुझपे सनम छाने लगा
कोई न जाने क्या हो जाता है
आशा ही आशा के गीत वो गाता है
क्या ख़ूब है ये मेरा यक़ीन
मुझको है बस मुझपे यक़ीन
परेशानियों से
दिल दूर-दूर जाने लगा
तनहाई में भी अब ख़ुश हो जाता है
आशा ही आशा के गीत वो गाता है
(समीर से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय । 14 फ़रवरी 2021 । सिएटल
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