जब-जब क़हर बरसा
और फूल मुरझाए
प्रभु तुम याद आए
जब-जब ज़हर फैला
दंगों ने घर जलाए
प्रभु तुम याद आए
अपना कोई तराना
हमने नहीं बनाया
किसी और के ही कल से
हमने है कल बनाया
जब-जब उखाड़े मुर्दे
और ज़िंदे हैं जलाए
प्रभु तुम याद आए
फैलाने नूर तेरा
हमने हैं घर जलाए
पूजा हो तेरी जमकर
आडंबर और बढ़ाए
जब-जब ढहाए मंदिर
और महल हैं बनाए
प्रभु तुम याद आए
जीवन है क्या इसको
हमने कभी ना जाना
सब हैं यहाँ मुसाफ़िर
सबको है दूर जाना
जब राज़ खुलता जाए
और उमर ढलती जाए
प्रभु तुम याद आए
(आनंद बक्षी से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय । 15 फ़रवरी 2021 । सिएटल
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