आजकल हाथ नहीं आग से जलते मेरे
बोलो देखा है कभी तुमने मुझे डरते हुए
जाने क्या होता है हर हाल में ख़ुशी होती है
दिन में ख़ुशी होती है और रात में ख़ुशी होती है
थाम लेता हूँ हर तूफ़ान को हँसते हुए
जब भी जुल्म-ओ-सितम कोई ढाता है
हौसला हो तो वो भी गुज़र जाता है
हमने देखा है जंजीरों को गलते हुए
कल की बात नहीं, हर बार यही होता है
वो ही पाता है इन्सान जो बोता है
हमने देखा है लुटेरों को लुटते हुए
(गुलज़ार से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय । 1 फ़रवरी 2021 । सिएटल
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