Saturday, February 6, 2021

ज़िन्दगी है एक सुडोकू

ज़िन्दगी है एक सुडोकू

आसान है तो

नीरस है

बोरिंग है

मुश्किल है तो

हाथ खड़े कर देता हूँ 

आगे कुछ सूझता ही नहीं 

क्या करूँ 

क्या न करूँ 


हल है

लेकिन

हल जानने में

कोई रूचि भी नहीं 


देर-सबेर 

सबका 

वही अंत होता है

81 खाने हैं

नौ आड़ी

नौ खड़ी 

क़तारें हैं

सब में वही एक से नौ तक के अंक हैं


हल में वो मज़ा कहाँ 

जो करने में हैं


बस 

इतना आसान न हो कि

मन ऊब जाए

और इतना कठिन भी नहीं कि

करने का मन ही न करे


हाँ 

कोई साथी

मिल जाए

तो करने में

मज़ा और बढ़ जाता है


राहुल उपाध्याय । 6 फ़रवरी 2021 । सिएटल 







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2 comments:

Dr Varsha Singh said...

ज़िन्दगी है एक सुडोकू
आसान है तो
नीरस है
बोरिंग है.....

वाह.बहुत ख़ूब, ज़िन्दगी की उपमा सुडोकू देना बेहद दिलचस्प है। बेहतरीन कविता... साधुवाद 🙏

Chhanda said...

Good one