ज़िन्दगी है एक सुडोकू
आसान है तो
नीरस है
बोरिंग है
मुश्किल है तो
हाथ खड़े कर देता हूँ
आगे कुछ सूझता ही नहीं
क्या करूँ
क्या न करूँ
हल है
लेकिन
हल जानने में
कोई रूचि भी नहीं
देर-सबेर
सबका
वही अंत होता है
81 खाने हैं
नौ आड़ी
नौ खड़ी
क़तारें हैं
सब में वही एक से नौ तक के अंक हैं
हल में वो मज़ा कहाँ
जो करने में हैं
बस
इतना आसान न हो कि
मन ऊब जाए
और इतना कठिन भी नहीं कि
करने का मन ही न करे
हाँ
कोई साथी
मिल जाए
तो करने में
मज़ा और बढ़ जाता है
राहुल उपाध्याय । 6 फ़रवरी 2021 । सिएटल
2 comments:
ज़िन्दगी है एक सुडोकू
आसान है तो
नीरस है
बोरिंग है.....
वाह.बहुत ख़ूब, ज़िन्दगी की उपमा सुडोकू देना बेहद दिलचस्प है। बेहतरीन कविता... साधुवाद 🙏
Good one
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