मेरी ज़िन्दगी में रोज़
कुछ न कुछ अच्छा होता है
कभी बहुत अच्छा
तो कई बार इतना अच्छा
कि बताए ना बने
कहूँ तो कोई माने ना
माने तो समझे ना
समझे तो जले बिना रह सके ना
कभी कभी लगता है
यह सब एक दिवास्वप्न है
मेरी ही रची एक दुनिया है
जिसमें ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ हैं
कि फूल खिलते हैं
तो मेरे लिए
चाँद-तारे निकलते हैं
तो मेरे लिए
अपनी बाँहों को
इतना भरा कभी न देखा
संगीत
इतना सुरीला कभी न सुना
पोर-पोर से
इतना प्रेम कभी न फूटा
राहुल उपाध्याय । 1 फ़रवरी 2021 । सिएटल
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