नारियल का तेल पिघलने लगा है
मौसम का प्रकोप बढ़ने लगा है
ग़म होते तो ख़ुशियाँ भी होतीं
चित्त हमारा अब थमने लगा है
सफ़र में है कुछ ऐसी कशिश
मंज़िल से डर लगने लगा है
कहने को अब कुछ भी नहीं
सोते-जागते दिल कहने लगा है
बैठे-बैठे सो जाता है 'राहुल'
और सोते-सोते जगने लगा है
राहुल उपाध्याय । 27 जनवरी 2020 । सिएटल
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