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उसे यूँ भूल जाऊँ , मुमकिन तो नहीं है
उसे मैं याद आऊँ, मुमकिन तो नहीं है
सुनूँगा मैं तराने, महफ़िल में लाखों लेकिन
उसे दिल सुन सकेगा, मुमकिन तो नहीं है
न जाम है, न साक़ी, न सुराही कहीं है
होश में मैं आ सकूँ, मुमकिन तो नहीं है
राहुल उपाध्याय । 30 जुलाई 2020 । सिएटल
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