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अगर एन-आर-आई, तुझको पहचान जाते
ख़ुदा की क़सम तुम्हें ग्रेजुएट न करते
जो मालूम होता, ये अंज़ाम-ए-तालीम
तो तुम को पढ़ाने की ज़ुर्रत न करते
फूल जैसा पाला, खार बन के निकले
तेज़ इतने हो कि, धार बन के निकले
जो उठ जाते पहले ही आँखों से पर्दें
तो भूले से भी कॉलेज में दाखिल न करते
मेरा दिल था शीशा, हुआ चूर ऐसा
के अब लाख जोड़ूँ तो जुड़ न सकेगा
तू पत्थर का बुत है पता 'गर ये होता
तो कुछ कहने की हिमाक़त न करते
जिन्हें तुमने समझा मेरी बेवकूफ़ी
मेरी ज़िन्दगी की वो मजबूरियाँ थीं
हाँ, पढ़ाई तुम्हारी इंग्लिश में ही कराई
क्यूंकि सरकार ने तो पहनीं चूड़ियाँ थीं
अगर सच्ची होती शिक्षा तुम्हारी
तो घबरा के तुम यूँ शिकायत न करते
जो हम पर है गुज़री हमीं जानते हैं
सितम कौन सा है नहीं जो उठाया
निगाहों में फिर भी रही तेरी सूरत
हर एक सांस में तेरा पैगाम आया
अगर जानते तुम ही इलज़ाम दोगे
तो भूले से भी तुम्हें शिक्षित न करते
(प्रेम धवन से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय । 30 नवम्बर 2007 । सिएटल
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वाह
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