हमने अपने आप को
कितने खानों में बाँट लिया है
वर्गीकृत कर दिया है
शहीद भी बँट गए हैं
कुछ जुलाई में
कुछ जनवरी में
तो कुछ अगस्त में याद आते हैं
यह भी नहीं कि
पूरे महीने याद आए
सबका एक दिन तय है
किसी का 26
किसी का 30
किसी का 15
जैसे दवाइयों की
एक्सपायरी डेट होती है
वैसे ही
श्रद्धा सुमन की भी
सबको एक ही दिन
याद कर लेना भी
यथोचित सम्मान नहीं
कि सबको थोक में निपटा दिया
ज़्यादा दिनों तक खींचना भी
तर्कसंगत नहीं
त्योहार भी तो मनाने हैं
किसी का जन्मदिन भी मनाना है
जबसे गुगल लोगों के हाथ आया है
सारा बेड़ा ही गर्क है
न जाने कहाँ-कहाँ से
इसकी-उसकी जन्मतिथि-पुण्यतिथि
बटोर लाते है
अब मनाते फिरो
कभी मोहम्मद रफ़ी
कभी मीना कुमारी
कभी प्रेमचंद
कभी बाल गंगाधर तिलक
कभी कलाम
कभी विश्वेश्वरय्या
माता-पिता का भी
बँटवारा कर दिया गया है
मातृ-दिवस पर
ख़बरदार कि पिता के लिए
कुछ अच्छा कह दिया
याद कर लिया
या कुछ ले आए
पितृ-दिवस पर सिर्फ पिता
राखी पर सिर्फ भाई
यहाँ भी यही हाल है
कि थोक में निपटाना ठीक नहीं
इसीलिए हमने खुद को
और बाक़ी सबको
खानों में बाँट लिया है
बाँट दिया है
मशीन की तरह
तारीख़ बदलते ही
ऑन-ऑफ़ हो जाते हैं
राहुल उपाध्याय । 1 अगस्त 2020 । सिएटल
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