Sunday, August 2, 2020

जो बनता है वह सच कहाँ होता है

दिन, रात होते

तो न दिन-रात होते 

न मौसम होते 

न गुल-ए-गुलज़ार होते


जो बनता है

वह सच कहाँ होता है 

संग राम होते 

तो न संग्राम होते


चादर रहती

बेसिलवट

जो न हम-तुम

साथ होते 


'गर होती 

समझ

न प्रयाग होते 

न इलाहाबाद होते


'गर होती 

समझ

न प्रयाग,

इलाहाबाद होते


राहुल उपाध्याय । 2 अगस्त 2020 । सिएटल 


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