दिन, रात होते
तो न दिन-रात होते
न मौसम होते
न गुल-ए-गुलज़ार होते
जो बनता है
वह सच कहाँ होता है
संग राम होते
तो न संग्राम होते
चादर रहती
बेसिलवट
जो न हम-तुम
साथ होते
'गर होती
समझ
न प्रयाग होते
न इलाहाबाद होते
'गर होती
समझ
न प्रयाग,
इलाहाबाद होते
राहुल उपाध्याय । 2 अगस्त 2020 । सिएटल
1 comments:
ये कही ना बात।
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