Tuesday, August 18, 2020

महीन से महीन महीना भी एक भार है

महीन से महीन

महीना भी एक भार है

यह साल उठेगा नहीं 

लगता इस बार है


तिल-तिल कर

गुज़रता वक़्त है

कहने को

जीने के दिन चार हैं


क्या सोम, क्या मंगल

क्या शनि, क्या रवि

हर दिन

होता एक वार है


मूर्ति तो नहीं 

पर मूर्ति सा ही

गर्भगृह में बंद

मेरा कारोबार है


ज्ञान और विवेक की

बारह बज गई है

न जाता है राहुल कहीं 

न आता घर अख़बार है


राहुल उपाध्याय । 18 अगस्त 2020 । सिएटल 


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