आ चल के तुझे,
मैं ले के चलूँ
इक ऐसे गगन के तले
जहाँ फ़ॉरवर्ड भी न हो
ईमोजी भी न हो
बस प्यार ही प्यार पले
इक ऐसे गगन के तले
सूरज की पहली किरण से
गुड मॉर्निंग दिमाग न खाए
चंदा की किरण से धुल कर
गुड नाइट न आते जाए
कोई पास बैठे
कोई घर आ के मिले
स्क्रीन पे न कट-पेस्ट चले
जहाँ दूर नज़र दौड़ आए
मोबाइल नज़र न आए
जहाँ रंग बिरंगे पोस्टकार्ड
आशा का संदेसा लाए
हाथों से लिखें
होंठों से चूमें
ख़त आते हो ऐसे भले
(किशोर कुमार से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय । 22 अगस्त 2020 । सिएटल
1 comments:
वाह :)
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