Thursday, August 27, 2020

मैंने काम और कमाई की तमन्ना की थी

मैंने काम और कमाई की तमन्ना की थी

मुझको हाथों की सफ़ाई के सिवा कुछ न मिला


गया मंदिर, गया मस्जिद, कहीं राहत न मिली 

किए सजदे, रोए दुखड़े, कहीं चाहत न मिली 

रहे हाथ ख़ाली, भलाई की तमन्ना की थी


किसी साधु किसी बाबा का सहारा भी नहीं 

रास्ते में कोई मिला नाकारा भी नहीं  

मैंने कब तन्हाई की तमन्ना की थी


मेरी राहों से जुदा हो गई राहें सबकी

आज बदली नज़र आती हैं निगाहें सबकी 

मिले कसाई, रिहाई की तमन्ना की थी


कुछ भी माँगा तो बदलते हुए फ़रमान मिले

चैन चाहा तो उमड़ते हुए तूफ़ान मिले

मिला बस शोर, शहनाई की तमन्ना की थी


घर में हो क़ैद ज़माने के अंधेरे पाए

घर से बाहर जो निकला तो झमेले पाए

मैंने कब रोज़ लड़ाई की तमन्ना की थी


(साहिर से क्षमायाचना सहित)

राहुल उपाध्याय । 7 अगस्त 2020 । सिएटल

https://youtu.be/Irs2oxHbJSk 


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