धुआँ है तो आग रही होगी
ख़ुशबू है तो शाख़ रही होगी
यूँही कोई रूका काम पूरा नहीं होता
सब की मिली-जुली चाह रही होगी
नफ़रतों-मोहब्बतों का सिलसिला चलेगा मुसलसल
दिन और रात के पीछे कोई बात रही होगी
नियम से रोज़ हरी मिर्च चबाता हूँ मैं
उसे एक बात तो मेरी याद रही होगी
अब समझा 'राहुल' घड़ी क्यूँ बाँधी गई
वक़्त के साथ-साथ वह भाग रही होगी
राहुल उपाध्याय । 9 अगस्त 2020 । सिएटल
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