Tuesday, August 11, 2020

तुम नहीं हो

आज मेरे छोटे बेटे का

आख़री 'टीन' जन्मदिन है

जन्माष्टमी भी है

और 

तुम नहीं हो


मैं रोऊँ या हँसूँ 

यह पूछने की भी 

हिम्मत नहीं है


जब तुम थे तो तुम्हें जाना नहीं

अब वीकिपीडिया खंगालने से क्या फ़ायदा 

लोगों पर अपनी जानकारी का लोहा मनवाने का 

दौर अब बीत चुका है 


इन्दौर जब जाता था

तब तुम्हारा बोलबाला नहीं था

जब मोबाईल आया 

व्हाट्सैप आया

और तुम फारवर्ड होने लगे

यूट्यूब पर 

कुमार विश्वास की 

अध्यक्षता मे 

लपेटे जाने लगे 

तब तुम्हारी पहचान हुई 


सच कहूँ तो

पिछले कई दिनों से

तुम्हें 

पढ़ा 

देखा

सुना नहीं 

फ़ॉरवर्ड तो बहुत हुए

पर उन्हें सुनना 

ज़रूरी नहीं समझा


भले ही

पहलवान की लौंगलता

कितनी ही अच्छी हो

ज़रूरी तो नहीं कि

जितनी बार

दुकान से गुज़रूँ 

उसे खाना

ज़रूरी समझूँ 


किसी भी रचनाकार की

दस रचनाएँ पढ़ लो, सुन लो

बाक़ी हज़ारों का आशय

समझ आ ही जाता है


तुम्हारा ललकारने का जज़्बा 

अनूठा था

और अदायगी तो 

किसी भी सोते को जगा दे


ईश्वर करे 

तुम्हारे जैसे रचनाकार और बने

जो

हुक़ूमत को लताड़ सके


राहुल उपाध्याय । 11 अगस्त 2020 । सिएटल 


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