भर अकेला , भर अकेला , भर अकेला
मिलेगा अब काम भर के फ़ार्म अकेला
हज़ारों फ़ार्म ऐसे-वैसे थे तुझको सताते
ये दुखड़े तेरे दिन पर दिन थे बढ़ाते
है कौन सा वो इंसान यहाँ पे जिस ने दुख ना झेला
भर अकेला , भर अकेला , भर अकेला
मिलेगा अब काम भर के फ़ार्म अकेला
मिले न कोई काम तो मेरी एक बात मान ले
मिटा वेदना आवेदन की एक पासपोर्ट साध ले
माता धरती को करके पिता आकाश मान ले
पूरा खेल एन-आर-आई का तूने कहाँ है खेला
भर अकेला , भर अकेला , भर अकेला
पा ले पासपोर्ट भर के फ़ार्म अकेला
(प्रदीप से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय । 20 अगस्त 2020 । सिएटल
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