कविता में शब्द होते हैं। और जैसा कि पिछली पोस्ट में कहा, कई बार हम उनका बिना अर्थ समझे उनसे प्रभावित हो जाते हैं। चाहे वे भारी भरकम हो या सीधे-सादे।
पिछली पोस्ट में साहिर ने भी नज़्म पढ़ी, और अमिताभ ने भी। साहिर ने जब पढ़ी तो अदायगी न के बराबर थी। बिलकुल सपाट रही। हालांकि उन्होंने कुछ पंक्तियाँ दोहराई ज़रूर। लेकिन वो जादू नहीं था जो अमिताभ ने पैदा किया।
मेरे विचार में अदायगी भी श्रोता पर असर छोड़ती है। यदि यश चोपड़ा इस नज़्म को फिल्म में न लेते, यदि अमिताभ की आवाज़ का जादू उस पर नहीं चढ़ता तो शायद यह नज़्म इतना असर नहीं करती और न ही इतनी सुनी जाती। शायद यही हश्र साहिर की अन्य रचनाओं का होता यदि काबिल संगीतकार, एवं गायक उन्हें एक नया रूप नहीं देते।
इन दिनों, कविता तिवारी की एक रचना बहुत प्रसिद्ध हुई। मैंने वीडियो देखा। प्रभावशाली अदायगी। सुनते ही कोई भी मंत्रमुग्ध हो जाए। इतने कठिन, तत्सम शब्द कि सर ही चकरा जाए। मैंने इसे इंटरनेट पर खोजने की कोशिश की। लिखित रूप में कहीं नहीं मिली। सो मैंने स्वयं ही सुन-सुन कर लिख डाली। कठिन शब्दों के अर्थ भी खोजे। कुछ का अंदाजा लगाया।
पहले प्रस्तुत है, बिना अर्थों के। उसके बाद है अर्थ सहित।
मन चंचल है, तन व्यूहल है
झंझावातों का है समूह
अगणित प्रतिकूल परीक्षाएँ
नित जीवन पथ लगता दुरूह
विकृतियाँ, कृतियों के दल का
यदि फलादेश सी लगती हों
संस्तुतियाँ चल विपरीत दिशा
यदि महाक्लेश सी लगती हों
यदि काव्यतत्व के समीकरण
संत्रास दिखाई देते हों
यदि वर्तमान वाले अवगुण
इतिहास दिखाई देते हों
यदि मर्यादाएँ मार्ग छोड़
पथ भ्रष्ट दिखाई देती हों
यदि नराधमों की अनुकृतियाँ
उत्कृष्ट दिखाई देती हों
कर दो विरोध के स्वर बुलंद
सबके हित में परिणाम कहो
निश्चित मत करो समय सीमा
फिर सुबह कहो या शाम कहो
तम हर, अंतर्मन उज्ज्वल कर
जय करुणाकर सुखधाम कहो
यदि मुक्तिमार्ग चुनना चाहो
मेरे संग जय सिया राम कहो
शुभ लक्ष्य लिए आए अतीत
तब तो भविष्य के स्वप्न बुनों
अन्यथा सहज पथ पर चल कर
विक्षिप्त बनों, निज शीश धुनों
जो अंधकार का अनुचर है
अनुयायी है पथ भ्रष्टों का
औचित्य भला कैसे होगा
ऐसे निकृष्ट परिशिष्टों का
तुम याज्ञवल्क के वंशज हो
नचिकेता जैसा तप लेकर
हिरण्यकश्यप से युद्ध करो
प्रहलाद सरीखा जप लेकर
धुन के पक्के पौरुष वाले
ध्रुव जैसे श्रेष्ठ तपस्वी हो
वह कृत्य करो, अनुरक्ति भरो
जिससे यह विश्व यशस्वी हो
हो त्याज्य अशुभ कुल फलादेश
जागृत हो कर शुभ नाम कहो
जो संस्कृति के संरक्षक हो
उनको ही बस गुणधाम कहो
हो हंस वंश अवतंश श्रेष्ठ
होकर सकाम निष्काम कहो
यदि मुक्तिमार्ग चुनना चाहो
मेरे संग जय सिया राम कहो
कर्तार उन्हें कर तार-तार
जो हैं कतार को तोड़ रहे
शुचिता-श्रद्धा-करुणा नकार
अपसंस्कृतियों को जोड़ रहे
उद्देश्य पूर्ण कर दे धरती
कर दे मानवता का विकास
क्षमता को दे जागरण मंत्र
तम हर भर दे सात्विक प्रकाश
तू निखिल विश्व का स्वामी है
अंतर्यामी घट-घट वासी
सज्जनता को कर दे विराट
कर खड़ी खाट जो संत्रासी
उद्भव-स्थिति-संहार-शक्ति
कुल तेरी ही तो छाया है
कहते हैं वेद, पुराण ग्रंथ
तुझमें ही विश्व समाया है
कवियो, भूमिका निभाओ तुम
यति-लय-गति-छंद-ललाम कहो
शुद्धतायुक्त परिमार्जन हो
मत उनको दक्षिण-वाम कहो
श्रद्धायुत नतशीर होकर के
तत्क्षण शत बार परिणाम कहो
यदि मुक्तिमार्ग चुनना चाहो
मेरे संग जय सिया राम कहो
———
अब अर्थ सहित:
मन चंचल है, तन व्यूहल (विहल) है
झंझावातों का है समूह
अगणित प्रतिकूल परीक्षाएँ
नित जीवन पथ लगता दुरूह
विकृतियाँ, कृतियों के दल का
यदि फलादेश (परिणाम) सी लगती हों
संस्तुतियाँ (सुझाव) चल विपरीत दिशा
यदि महाक्लेश सी लगती हों
यदि काव्यतत्व के समीकरण (संतुलन)
संत्रास (आतंक) दिखाई देते हों
यदि वर्तमान वाले अवगुण
इतिहास दिखाई देते हों
यदि मर्यादाएँ मार्ग छोड़
पथ भ्रष्ट दिखाई देती हों
यदि नराधमों की अनुकृतियाँ (नकल)
उत्कृष्ट दिखाई देती हों
कर दो विरोध के स्वर बुलंद
सबके हित में परिणाम कहो
निश्चित मत करो समय सीमा
फिर सुबह कहो या शाम कहो
तम हर, अंतर्मन उज्ज्वल कर
जय करुणाकर सुखधाम कहो
यदि मुक्तिमार्ग चुनना चाहो
मेरे संग जय सिया राम कहो
शुभ लक्ष्य लिए आए अतीत
तब तो भविष्य के स्वप्न बुनों
अन्यथा सहज पथ पर चल कर
विक्षिप्त (पागल) बनों, निज शीश धुनों
जो अंधकार का अनुचर है
अनुयायी (समर्थक) है पथ भ्रष्टों का
औचित्य भला कैसे होगा
ऐसे निकृष्ट परिशिष्टों (बाद में जो जोड़ा गया) का
तुम याज्ञवल्क के वंशज हो
नचिकेता जैसा तप लेकर
हिरण्यकश्यप से युद्ध करो
प्रहलाद सरीखा जप लेकर
धुन के पक्के पौरुष वाले
ध्रुव जैसे श्रेष्ठ तपस्वी हो
वह कृत्य करो, अनुरक्ति (लगाव) भरो
जिससे यह विश्व यशस्वी हो
हो त्याज्य अशुभ कुल फलादेश
जागृत हो कर शुभ नाम कहो
जो संस्कृति के संरक्षक हो
उनको ही बस गुणधाम कहो
हो हंस वंश अवतंश (श्रेष्ठ) श्रेष्ठ
होकर सकाम निष्काम कहो
यदि मुक्तिमार्ग चुनना चाहो
मेरे संग जय सिया राम कहो
कर्तार (करने वाला, ईश्वर) उन्हें कर तार-तार
जो हैं कतार को तोड़ रहे
शुचिता (सफाई, पवित्र)-श्रद्धा-करुणा नकार
अपसंस्कृतियों को जोड़ रहे
उद्देश्य पूर्ण कर दे धरती
कर दे मानवता का विकास
क्षमता को दे जागरण मंत्र
तम हर भर दे सात्विक प्रकाश
तू निखिल विश्व का स्वामी है
अंतर्यामी घट-घट वासी
सज्जनता को कर दे विराट
कर खड़ी खाट जो संत्रासी (आतंकी)
उद्भव-स्थिति-संहार-शक्ति
कुल तेरी ही तो छाया है
कहते हैं वेद, पुराण ग्रंथ
तुझमें ही विश्व समाया है
कवियो, भूमिका निभाओ तुम
यति (कविता में एक जगह )-लय-गति-छंद-ललाम (अलंकार) कहो
शुद्धतायुक्त परिमार्जन (सफाई) हो
मत उनको दक्षिण-वाम (परंपरावादी-प्रगतिशील) कहो
श्रद्धायुत नतशीर होकर के
तत्क्षण शत बार परिणाम कहो
यदि मुक्तिमार्ग चुनना चाहो
मेरे संग जय सिया राम कहो
——
राहुल उपाध्याय । 23 अगस्त 2020 । सिएटल
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