तीन रंग हैं लेकिन वो तिरंगा नहीं
ये टापू है लेकिन किनारा नहीं
कहने को सब
लेकिन कोई हमारा नहीं
बारूद में नहाती हैं सतरंगी रातें
बार्बेक्यू पे होती हैं बेतुकी सी बातें
जय-जय का गूंजता कहीं नारा नहीं
ऐसा नहीं कि हाथ हमने बढ़ाया नहीं
बढ़ के उन्हें गले लगाया नहीं
बस उन्होंने ही हमे कभी पुकारा नहीं
बंजारे हैं हम, बंजारे रहेंगे सदा
भटके हैं हम, भटके रहेंगे सदा
जो जड़ से न जुड़े उनका होता सहारा नहीं
सिएटल । 513-341-6798
4 जुलाई 2012
ये टापू है लेकिन किनारा नहीं
कहने को सब
लेकिन कोई हमारा नहीं
बारूद में नहाती हैं सतरंगी रातें
बार्बेक्यू पे होती हैं बेतुकी सी बातें
जय-जय का गूंजता कहीं नारा नहीं
ऐसा नहीं कि हाथ हमने बढ़ाया नहीं
बढ़ के उन्हें गले लगाया नहीं
बस उन्होंने ही हमे कभी पुकारा नहीं
बंजारे हैं हम, बंजारे रहेंगे सदा
भटके हैं हम, भटके रहेंगे सदा
जो जड़ से न जुड़े उनका होता सहारा नहीं
सिएटल । 513-341-6798
4 जुलाई 2012
2 comments:
pardes main rehene ke dard ko aapne bakhoobi lafzon main utaara hai.
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