दुआ है कि कोई दुआ करे मेरे लिए
मैं उनका बनूँ जो बने हैं मेरे लिए
खुद की दुआएं असर करती नहीं
खुद की खुदगर्जी बनी मुसीबत मेरे लिए
मैं फिरता रहा गली-गली मुसलसल
कोई मेरी गली आए बस मेरे लिए
सुने हैं सुरीले गीत सभाओं में मैंने
कोई तो हो जो गीत गाए मेरे लिए
मिलते हैं, हँसते हैं, खिलखिलाते हैं लोग
क्या इनमें से कभी कोई रोएगा मेरे लिए?
20 नवम्बर 2012
सिएटल । 513-341-6798
3 comments:
दिल को छूने वाली कविता है। Very sweet!
Bahut hee sundar rachne, dil ke choo liya. Sadhuwaad!
भावपूर्ण अभिव्यक्ति .....
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