Tuesday, November 20, 2012

दुआ है कि कोई दुआ करे मेरे लिए


दुआ है कि कोई दुआ करे मेरे लिए
मैं उनका बनूँ जो बने हैं मेरे लिए

खुद की दुआएं असर करती नहीं
खुद की खुदगर्जी बनी मुसीबत मेरे लिए

मैं फिरता रहा गली-गली मुसलसल
कोई मेरी गली आए बस मेरे लिए

सुने हैं सुरीले गीत सभाओं में मैंने
कोई तो हो जो गीत गाए मेरे लिए

मिलते हैं, हँसते हैं, खिलखिलाते हैं लोग
क्या इनमें से कभी कोई रोएगा मेरे लिए?

20 नवम्बर 2012
सिएटल । 513-341-6798

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3 comments:

Anonymous said...

दिल को छूने वाली कविता है। Very sweet!

Anonymous said...

Bahut hee sundar rachne, dil ke choo liya. Sadhuwaad!

Dr (Miss) Sharad Singh said...

भावपूर्ण अभिव्यक्ति .....