जिनका हम सम्मान करते हैं
उनके प्रति आदर जताने के लिए
हम काम-धाम छोड़ के आराम करते हैं
अव्वल तो कोई है ही नहीं जिसके पदचिन्हों पर चला जा सके
हाँ, स्वयंसेवकों के डर से भेड़चाल चलने को अवश्य तैयार रहते हैं
थे अच्छे या बुरे? है किसको पता
दिवंगत को सब आँख बंद करके प्रणाम करते हैं
राष्ट्रपिता, राज्यपिता, प्रांतपिता, धर्मपिता
न जाने क्या-क्या नाम दे कर, पिता के नाम को बदनाम करते हैं
ऐसा नहीं कि ऐसा पहले कभी हुआ नहीं
लेकिन गलती दोहराने की गलती क्यों बार-बार करते हैं?
19 नवम्बर 2012
सिएटल । 513-341-6798
उनके प्रति आदर जताने के लिए
हम काम-धाम छोड़ के आराम करते हैं
अव्वल तो कोई है ही नहीं जिसके पदचिन्हों पर चला जा सके
हाँ, स्वयंसेवकों के डर से भेड़चाल चलने को अवश्य तैयार रहते हैं
थे अच्छे या बुरे? है किसको पता
दिवंगत को सब आँख बंद करके प्रणाम करते हैं
राष्ट्रपिता, राज्यपिता, प्रांतपिता, धर्मपिता
न जाने क्या-क्या नाम दे कर, पिता के नाम को बदनाम करते हैं
ऐसा नहीं कि ऐसा पहले कभी हुआ नहीं
लेकिन गलती दोहराने की गलती क्यों बार-बार करते हैं?
19 नवम्बर 2012
सिएटल । 513-341-6798
4 comments:
वाह बहुत खूबसूरत अहसास हर लफ्ज़ में आपने भावों की बहुत गहरी अभिव्यक्ति देने का प्रयास किया है... बधाई आपको... सादर वन्दे...
ek sher yad aa gaya...
main sach kahunga magar fir bhi haar jaaunga,
wo jhoot bolega aur lajawab kar dega...
"गलती दोहराने की गलती" phrase बहुत अच्छा लगा!
अगर मन से हम किसी को पिता मानें और उनके गुणों को याद करें, तो यह सही है, मगर डर में और pressure में ऐसा करना या किसी का हमसे करवाना, सही नहीं लगता...
एक और बात: हमें किसी के जाने का loss महसूस हो न हो, लेकिन जो loss को grieve कर रहे हैं, उनकी feelings की ओर हमारी sensitivity ज़रूर बनी रहे...
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