Tuesday, September 4, 2012

अलसाते गीत

उम्र ढल चुकी है
श्वास शिथिल है
बालों पर भी रंग चढ़ चुके हैं
लेकिन निगाहें वहीं रूकी है
जिस डगर पर तुम मिली थी
कोमल भावनाएँ जब जगी थीं
आलिंगन आतुर तुम खड़ी थी
और घटाएँ छा रही थीं
उमंगें मंडरा रही थीं


न दिन का समय था
न रात हुई थी
बस जज़बात की
बरसात हुई थी


बड़ी देर तक हम चुप रहे थे
कहने को कुछ ढूँढ रहे थे


और मुझे कुछ सूझा नहीं
तो मैंने बस ये कह दिया था
"अच्छा बताओ तुम क्या सुनोगी
रेडियो सिलोन या विविध भारती?
ऑल इंडिया रेडियो की उर्दू सर्विस
या रेडियो नेपाल के अलसाते गीत?"


दिल ढूँढता है फिर वही फ़ुर्सत के रात-दिन ...

सिएटल । 513-341-6798
4 सितम्बर 2012

 

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3 comments:

Madan Mohan Saxena said...


बेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको
और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

http://madan-saxena.blogspot.in/
http://mmsaxena.blogspot.in/
http://madanmohansaxena.blogspot.in/

Anonymous said...

एक मीठी सी याद की प्यारी सी description.
कुछ ऐसा लगा जैसे यह बात सामने ही हुई हो..

Archana Chaoji said...

तुम चुपके से आ जाते हो... बीते दिन याद दिलाते हो ....